प्रेम में रंग-उपेन्द्र

प्रेम फरवरी


प्रीत के गीत जब भी लिखे 
प्रेयसी दूर होती गई 
इश्क में डूबना जब हुआ 
आशिकी दूर  होती गई 


जब मौसम बासंती हुआ 
पत झरे , कोंपल खिले 
नित नई दूरियां बन गई 
मन ने कहा जब मिलें 


कब उपवन महकता मिला 
कब बहारों ने खुशियाँ लुटाई 
प्रेम शब्द बस किताबों में था 
हुई कब मदिर मेरी अँगनाई 


कथानक तो मिलते रहे 
कहानी दूर होती  गई 


स्वप्न सब नित बिखरते गये 
नयन भी निर्जला हो गए 
लक्ष्मण सी हुई जिंदगी 
रास्ते उर्मिला  हो गये 


रात तारों भरी तो रही 
चाँद पर लापता हो गया 
भोर ने भी हँसकर कहा 
व्यर्थ ये रतजगा हो गया 


जब भी जीने का मन हुआ 
जिंदगी दूर होती गई 


गीत कोई सरस जब हुआ 
तार वीणा की झंकृत हुई 
गीत कविता ग़जल सब मेरी 
फिर उनसे अलंकृत हुई 


प्रेम अलगाव की राह है 
पीर विरहन की पावन हुई 
जेठ सी  हो तपन मेरे मन 
तब धरा भीग सावन हुई 


प्रेम में रंग जब भी भरा 
सादगी दूर होती गई 


@उपेन्द्र द्विवेदी



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