रंग में भंग -डॉ पूजा मिश्र

होली विशेष


नमिता को हमेशा से होली का त्योहार बहुत पसंद था,बचपन से आज तक होली खेलनें में उसने कोई कसर नहीं छोड़ी,पूरे मोहल्ले में मशहूर थी।और इस बार तो उसका उत्साह दूना चौगुना था,क्योंकि शादी के बाद ये वैसे तो दूसरी होली थी,पर अखिल उसके पति के साथ पहली,क्योंकि पहली होली पर मायके जाने की प्रथा जो है,मगर इस बार तो वो खेल पाएगी अखिल के साथ, सोच सोच कर ही उसका मन रोमांचित हो उठता था,खेर होली का दिन आया,उसके सास ससुर ने उसको बुलाया सुबह ही,उसने दोनों के पैर छुए,और गुलाल डाल कर होली की शुभकामनाएं  दीं,यहाँ तक तो सब ठीक था मगर जैसे ही उसकी सास ने कहा कि बेटा अखिल के साथ तुम सिर्फ गुलाल से होली खेलना,उसे रंगों से एलर्जी है,उसे लगा कि हो गया "रंग में भंग"वो बोली तो कुछ नहीं मगर उसका चेहरा उतर गया,वापस आयी और छत पर चुप चाप जाकर बैठ गयी, चुपके से जब उसके पति ने पीछे से उस पर बाल्टी उड़ेल दी,तब तो उसमे वही जोश आ गया,जो पहले था,पहले तो उसने अखिल पर गुलाल डाला,और फिर रंग लगाना शुरू कर दिया, उसको होश तब आया जब अखिल के चेहरे पर सच मे दाने उठने लगे,,एकदम से वो घबरा गई,सारा होली का खुमार उतर गया,दौड़ कर नीचे गयी और सासु माँ के सामने जा कर फफक फफक कर रो पड़ी,सासु माँ सब समझ गयी और जल्दी से अखिल को जा कर उनका पहले से तैयार लेप लगा दिया,थोड़ी ही देर में अखिल सामान्य हो गया। नमिता ने सासु माँ से पैर छूकर माफी मांगी,और उन्हें धन्यवाद दिया कि उन्होंने रंग में भंग होने से बचा लिया।।।


          स्वरचित
      डॉ पूजा मिश्र आशना


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