होली संस्मरण
संस्मरण के कोष मे जिन्दगी के सभी अनकहे अनछुए घटनाओ को हम सहेज कर रखते है ।वंडर है जब चाहो स्मृति कोष से निकाल मित्रो के बीच ठहाके लगा सकते है।तो कभी हम दर्दो के बीच दिल का गुबार हल्का भी कर सकते है ।सच मे संस्मरण पर सिर्फ मेरा अधिकार है जिसे कोई छिन नही सकता है।कभी ये संस्मरण दुखदायी होने पर भी सुखदायी भी बन जाते है। होली का दिन था।सभी होलिका दहन की तैयारी मे थे।होली पर हमारे परिवार मे पुरण पोळी (मीठी रोटी गुजिया बनाने का विशेष रिवाज था।उस दिन भोजन मे ये व्यंजन बनाने की जिम्मेदारी मेरी थी।बनाते समय मेरी स्मृति इस घर की पहली होली पर चली गई ।
परिवार बड़ा था।देवरानी जेठानी के घर से मिठाई कपड़ा आदि बहुत सी चीजे आई थी।वे उन्हे दिखाने मे व्यस्त थी।उस दिन भी पुरण पोळी बनी थी।गरम भजिऐ के साथ सबने खाया था।दूसरे दिन सुबह से ही गुलाल लेकर सभी तैयार थे। मुझे होली खेलना बेहद पसन्द था ।किन्तु छोटी बहू नई दुल्हन तथा पहली होली।ये सब समझने मे असमर्थ थी कि अपने आप को कैसे सामने लाऊ।बाहर महिलाऐ जो सभी आसपास की थी गीत गाकर सबको बाहर बुलाने मेरे जुटी थी। दुल्हन को बाहर लाओ नही तो हम अन्दर आकर रंग देंगे ।तब सासूजी मेरे कमरे मे आकर मुझे पकड कर बाहर ले आई थी ।अरे बेटी डरना क्या रंगो के साथ खुशी मनाना ही है ।सासूजी का स्नेह देखकर मै मस्त हो गई बस तपाक से तैयार होकर सबके बीच हो ली थी। सास बहू का रिश्ता बहुत नाजुक होता है
इस रिश्तो को मजबूत तथा व खुशनूमा बनाये रखना आसान नही होता है।दोनो तरफ की समझदारी ही इसमे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।पहले समझी थी कि सासूजी मुझे बाहर जाने से मना करेंगी ।मै बहुत खुश हुई थी उनका प्यार पाकर ।जम के होली खेली रंगो से तर हो गई थी ।जब माहौल शान्त हुआ तब घर लौटी ।दरवाजे पर आते मुझे लगा मानो सारा घर घूम रहा है।चक्कर आने लगे।सम्हल कर नीचे बैठ गई थी।फिर क्या हुआ पता नही ।जब होश आया तब पति देव व घर के सभी आसपास खड़े थे।ससुर जी सासूजी को डाँट रहे धे।
अरे वो नई है ।यहाँ के लोग बड़े अजीब है।रंगो में भांग घोल देते या नशीला पदार्थ तुम्हे नही मालूम पीछे रज्जू की हालत क्या हो गई थी।कयो जाने दिया उसे बाहर जेठ कहने लगे थे ।बस भी करो पापा अब अभी ठीक हो जायेगी।सासूजी मेरे सिरहाने बैठी थी ।जेठानी को कहा था जाओ इसे कुनकुने पानी से नहला दो।
शाम होते ही सभी आँगन मे सजे चले आये थे।गाना बजाना नृत्य की महफिल ऐसी जमी कि आज भी मै भूल नही सकती।हम दोनो ने भी जमकर डान्स किया था।सासूजी ने तारीफ कर नजर उतारी थी।
सासूजी की आवाज सुनते ही मेरे संस्मरण का द्वार बन्द हो गया।सासूजी कह रही थी अरे बहू पुरण मे जायफल ज्यादा तो नही डाला है ।सब ह॔स पडे थे।शायद उनकी स्मृति पटल पर भी बीति यादे आ गयी होंगी ।
मेरा मानना है होली का भरपूर आनंद लेना चाहिए ।किन्तु होली के सही अर्थ को समझकर मनानी चाहिए ।अवगुणो का नाश कर एक दूजे को प्रेम की सौगात देनी चाहिए ।
अमिता मराठे
इन्दौर
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