संबधों की प्रगाढ़ता का सुअवसर होली -कपूर

होली विशेष -33


होली केवल रंगों के खेलने का त्यौहार ही नहीं है,अपितु दिलों का रंगना इसमें  परम आवश्यक है।रंगों के बहने के साथ ही मन का मैल बहना भी बहुत आवश्यक है ,तभी होली की सार्थकता है।कहा  गया है कि, अंहकार मनुष्य के पतन का मूल कारण है। अंहकार मनुष्य की बुद्धिविवेक , तर्कशक्ति , मिलनसारिता तथा अन्य गुणों का हरण कर लेता है।व्यक्ति का जितना वैचारिक पतन होता है  ,उतना ही उसका अंहकार बढता जाता है। अंहकार से देवता भी दानव बन जाता है और अंहकार रहित मनुष्य देवता समान हो जाता है।बड़ी से बड़ी गलती के तह में  यदि  जाये ,तो मूल स्रोत में अंहकार को ही पायेंगे।
ईर्ष्या व घृणा का मूल कारण भी अंहकार ही होता है ,जो अन्ततः कई क्षेत्रों में  असफलता का कारण बनता है। होली वो अवसर है ,जब कि ,मनुष्य समस्त विद्वेष व कुभावना का त्याग कर  शत्रु को भी मित्र बना सकता है।अंहकारी सदैव विनम्रता विहिन होता है।अंहकार आने से  मनुष्य अपने वास्तविक रूप से भी  ,धीरे धीरे दूर हटने लगता है और एक बहुरूपीये समान बन जाता है।वह कई झूठे  आवरण अोढ लेता है और उसकी  अपनी  असलियत ही लुप्त होने लगती है।अंहकारी में , हम की भावना नहीं  होती है।उसमें  केवल  मैं की  भावना ही होती है।यह भावना नेतृत्व क्षमता  व समाजिक लोकप्रियता के लिए अत्यंत घातक है।अंहकारी व्यक्ति में धीरे धीरे ,धैर्य  , निष्ठा ,सदभावना का अभाव होने लगता है।अंहकार का खानदान बहुत बड़ा है और यह अकेले नहीं आता है और  साथ में कोध्र, स्वार्थ, घृणा ,अहम, अलोकप्रियता  ,अधीरता , आलोचना ,निरादर ,कर्मविहीन सफलता की लालसा ,अतिआत्म विश्वास, त्रुटि को स्वीकार न करना, आदि अनेक अवगुण स्वतः ही साथ आ जाते हैं।अतएव ,होली में बड़ापन दिखायें, एक कदम आगे बढे, दिल से गले लगायें।आप पायेंगे नफरत की बहुत मजबूत सी दिखने वाली दिवार, भरभरा कर एक झटके में ढह जायेगी।
सारांश यही है कि, होलिका दहन मे अहंकार को भी जला कर नाश कर दिया जाना चाहिए।तभी होली जैसे पवित्र पावन पर्व की सार्थकता है।पहल करके देखिये, एक कदम बढ़ाइये, आप पाएंगे कि पहले ही दो कदम आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।गले भी लगिये और दिलों को भी मिलाइये।आप देखेंगे कि होली एक सकारात्मक परिणाम आपके जीवन में लेकर आयेगी।


एस के कपूर
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