प्रेम फरवरी
प्रेम दो अक्षरों से बना महज शब्द नहीं
प्रेम शब्द को परिभाषित करना है सरल नहीं
कविताओं में परिभाषा व्यक्त करना सरल नहीं
तुमने हर बार समझा है इसे महज शब्द
तुमने भावनाओं को समझने का प्रयत्न
ही नहीं किया कभी।।
मैं नहीं जानता कि
तुम पढ़ रही हो इस वक्त मेरा खत या नहीं
मैंने हर क्षण पल किया है समर्पित
तेरी खुशी की खातिर
आसान नहीं है इस दुनिया में किसी का
किसी के लिए सब कुछ अर्पित करना
पर मैंने तो सर्वस्व किया है समर्पित
रब से की है दुआ कि तू खुश रह सर्वदा।।
जब सुबह सवेरे मेरी आँखें खुलती है न!
मेरी आँखें भी केवल तुम्हें ही देखना चाहती है
मेरा मन मेरे पास नहीं रहता है
मन हर पल हर क्षण तुम्हारे लिए ही चिंतित रहता है
पर तुम्हें तो मेरी भावनाओं की कद्र ही नहीं है
क्योंकि तुमने तो प्रेम को महज एक शब्द समझा
भावनाओं को समझ लेती काश!
तो सच में सब कुछ अच्छा ही होता आज।।
कुमार संदीप
स्वरचित
ग्राम-सिमरा
पोस्ट-श्री कान्त
जिला-मुजफ्फरपुर
राज्य-बिहार
पिनकोड-843114
इमेल- worldsandeepmishra002@gmail.com
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