संस्मरण -आडवानी

होली संस्‍मरण



बात कुछ साल पहले की है हम सोच रहे थे पिछली बार बहुत रंग लगा था इतना कि कई दिनों तक चेहरा खराब था ।उठकर ही तेल लगा लेते हैं और हमने खूब सारा तेल शरीर व  बालों में लगा लिया। बाल बहुत लंबे थे तो उसका जुड़ा बना दिया ताकि गिले ना हो और कोई रंग ना डाल सके कुछ देर में बच्चों की और बड़ों की टोली आ गई और हर्बल गुलाल है खूब सारा   सबने लगाया ,हर्बल है तो नुकसान नहीं होगा  और हमने भी लोगों को खूब रंगा,लगाएं सूखे रंगों से खेली जा रही होली थोड़ी देर बाद कुछ बच्चों ने मस्ती की ओर गुलाल और चूड़ी रंग लगाने  लगे उन्हें मना कर दिया एक बच्चा कुर्सियों में हमारे पीछे बैठा था जहां हम सब नाश्ता करने के लिए बैठे थे उसने एक चूड़ी रंग की डब्बी पकड़ी थी जो सूखा रंग जिसे  पानी डालकर   गिला किया जाता है। और बहुत मासूमियत से देख रहा  था , उसे भी हम अपनी प्लेट से खिलाने लगे  थोड़ी देर बाद उसने हमारे जुड़े के बीच में बालों में पूरा रंग डाला थोड़ा पानी डालकर भाग गया हमें लगा बच्चा है थोड़ा रंग डालकर ,खुश हो रहा है  लेकिन जब हम बाल धोए इतना रंग निकलता, धोते-धोते  हम  थक जाते रंग निकलना बंद नही हूआ, हफ्ते में 2 - 3  बार धोते  तो भी रंग निकले जा रहा था ।
एक महीना पूरा रंग ही निकलता रहा वह आज तक हम नही भूल पाए हैं ।उस बच्चे ने पूरी डबी हमारे बालों में डाल दि थी ।
 कुछ दिनों बाद होली है आज हमें वह घटना याद आ गई वह बच्चा बड़ा हो गया है और हमारे बाल छोटे, और अब ऐसे रंग मिलना भी शायद बंद हो गए हैं उनकी जगह पूरी तरीके से हर्बल रंग मार्केट में नजर आते हैं।


 



 ट्विंकल आडवाणी बिलासपुर


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