संस्मरण-हमारे पड़ोसी कपूर साहब

होली विशेष


बात लगभग चालीस वर्ष पूर्व की है।मैं हायर सेकंडरी स्कूल में पढ़ रहा था।उन दिनों आज जैसी कॉलोनी संस्कृति विकसित नहीं हुई थी।शहर भी गली-मोहल्ले ,पास-पड़ोस की संस्कृति को ही पोषित करते थे।यानी पुरी तरह से कस्बाई संस्कृति।आपसी रिश्ते काका-काकी,मामा-मामी,दादा-जीजी भाईजान, खाला,बड़ी बी से बंधे रहते थे,खून के रिश्ते न होकर भी गहरे रिश्ते।लेकिन यह बात दिल्ली से हमारे शहर में नौकरी करने आए कपूर साहब को शायद पता नहीं थी या फिर उस समय दिल्ली में रिवाज बदल चुका था बिल्कुल आज की तरह।हमारे पड़ोस में ही कपूर साहब रहा करते थे।उनको आए अभी अधिक समय नहीं हुआ था।होली का त्यौहार नजदीक आ रहा था।


क्षेत्र में होली और रंगपंचमी का त्यौहार बहुत ही जोरशोर से मनाया जाता था।सभी मोहल्लों में होलिका दहन की तैयारी की जाती थी। मोहल्ले के ही लड़के चंदा वसूली अभियान होली का डांडा गड़ते ही शुरू कर देते थे।चंदा वसूली भी जबरन।कोई नहीं देता या फिर कम देता तो उसका नाम दर्ज हो जाता था और होलिका दहन की रात उसके नाम की बोम रात भर चलती रहती थी।वैसे तो होली का त्यौहार ही हुडदंग, छेड़खानी और मौजमस्ती का रहा है।इसीलिये रात में हुड़दंगियों की टोली मोहल्ले के सभी लोगों की बोम लगाकर जगाए रखती थी।


हाँ तो बात कपूर साहब की कर रहा था।वे पास-पड़ोसियों से ज्यादा मिलते जुलते भी नहीं थे।उनके तीन लड़के और एक लड़की थी,सब गोरे-चिट्टे,तीखे नाक-नख्श वाले।मोहल्ले वालों की निगाहें उनके घर की ओर लगी ही रहती थी।जब मोहल्ले के हुड़दंगियों की टीम चंदा लेने आई तो कपूर साहब ने मना कर दिया।बहुत हुज्जत हुई।पास-पड़ोसियों ने भी उन्हें समझाया कि साल में एक बार ही त्यौहार आता है,यह अपनत्व के साथ ही ऐसी बात कर रहे हैं।अन्य अवसरों पर आपके दुख तकलीफ में सबसे पहले यही लोग काम आएंगे लेकिन फिर भी वे नहीं माने।लड़के उन्हें धमकाते हुए निकल गए और बोल गए कि अब घर के बाहर गंदगी भरी हांडी के लिए तैयार रहना।।मोहल्ले में तीन-चार और भी परिवार थे जिन्होंने चंदा या तो नहीं दिया या फिर कम दिया था,उनके साथ भी यही व्यवहार होना था।


होली वाली रात इनमें से किसी के घर की खटिया होलिका दहन में काम आ गई तो किसी के घर से लकड़ियाँ चुरा कर ले गए।सबसे ज्यादा परेशान तो कपूर साहब को किया गया।रात भर इन लोगों के नाम की बोम लगती रही।ऐसी-ऐसी गालियाँ कि सामान्य दिन हों तो लोग मरने-मारने पर उतारू हो जाएं।फिर भी कपूर साहब भी अपने परिवार के साथ रातभर जागते रहे।जब सुबह के साढे चार बज गए तो चिंतामुक्त हो गए कि चलो अब गंदगी भरी हांडी नहीं फोड़ी जाएगी।वे भी अन्य लोगों की भांति जब सो गए तो पाँचो के घरों पर सुबह पाँच बजे हांडियाँ फोड़ दी गई।घरों के दरवाजे और खिड़कियों पर कालीख पोत दी गई और लिख भी गए कि बुरा न मानो होली है।सुबह सात बजे मोहल्ले में हंगामा खड़ा हो गया।अन्य लोग घर की साफ-सफाई की व्यवस्था में जुट गए लेकिन कपूर साहब थे कि पोलिस स्टेशन पहुँच गए।पुलिस वालों ने भी उन्हें समझाया कि कपूर साहब यह त्यौहार ही है मौज-मस्ती का।इसमें बुरा नहीं माना जाता।मोहल्ले वालों ने भी उन्हें समझाइश दी।आखिरकार उन्होंने रिपोर्ट तो नहीं की किन्तु उनकी नाराजगी दूर नहीं हुई।


होली के पाँच दिन बाद रंगपंचमी का त्यौहार था।चौराहे पर रंग की बड़ी कड़ाही भर कर रखी थी।जो भी उधर से गुजरता, उसे कड़ाही में डुबकी लगवाई जाती।घरों से भी लोगों को निकाल-निकालकर लाया जाता,रंगों से सरोबार करते और कड़ाही में डुबकी लगवाते।कपूर साहब के घर भी धावा बोला लेकिन शायद इस बार वे अपने पुराने रंग में वापस आ गए थे।हम सभी ने उम्मीद की थी कि वे घर से बाहर नहीं निकलेंगे लेकिन उन्होंने जो किया,उसकी हम सभी ने कल्पना नहीं की थी।वे कीचड़, गोबर और रंग लेकर तैयार खड़े थे और बोल रहे थे बुरा न मानों होली है।


डॉ प्रदीप उपाध्याय


मेंढ़की रोड, देवास, म.प्र.455001


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