पाती प्रेम की संख्या -06
सुनो!
मेरे मीत! इसी नाम से तो पहले दिन से लेकर आज तक बुलाती आयी हूँ तुम्हें! हमारा मिलना नियति का लिखा विधान ही तो था, तभी हमारे अपने-अपने पहले से निश्चित किये हुए कार्यक्रम स्वयं ही बदलते चले गये। एक ही शहर के होने पर भी हम दूसरे राज्य की जमीन पर मिले और ऐसे मिले कि जन्म-जन्मांतरों के लिए कब एक हो गये पता ही न चला।
तब से सुख-दुख के रंग भरे पड़ावों को साथ चल कर पार करते हुए जीवन यात्रा के तीसरे चरण में प्रवेश कर चुके हैं। एक-दूसरे की कमजोरियों को स्वीकारते हुए, एक-दूसरे को पूरा करने के हमारे प्रयास के रंग जीवन बगिया में भरपूर खिले हैं। ईश्वर ने तुम्हारे माध्यम से विविध रूपों में इतना प्रेम दिया है कि आँचल ही छोटा पड़ गया है।
नोक-झोंक, प्रेम के साथ एक-दूसरे को संभालते हुए प्रेम की यह यात्रा हर जन्म में हम साथ-साथ करें, ईश्वर से बस इतना ही माँगना है.... न इससे कम न इससे अधिक। और हाँ लखनऊ में काम पूरा होने के बाद लखनवी चिकन कढ़ाई वाली साड़ी और रेवड़ी लाना न भूलना।
सदा तुम्हारी
भारती
•••डा० भारती वर्मा बौड़ाई
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