मेरे प्रिय नायक
मुझे विश्वास है अपनी उंगलियों कि कलम से मेरे मन पर लिखी यह पाती तुम जरुर पढ़ोगे।
आज भी याद है वह क्षण जब पहली बार अपने घरवालो के सामने आंखों से इशारे में ही कह दिया कि मैं तुमहे पसंद हूं ।
होली के सारे लाल गुलाल जैसे मेरे ही गालों पर अपना रंग छोड़ गए हों।और वो हमारे प्रथम मिलन की रात ! मैं आज भी उस अहसास को , उस स्नेह भरी तुम्हारी छूवन को महसूस करती हूं। लेकिन मेरे मन में एक प्रश्न है कि यदि तुम्हें पसंद मैं थी ! तो गले मृत्यु ने क्यों लगाया ? दुल्हन मैं थी तुम्हारी तो तुम उसके लिए क्यों दूल्हा बने !!? परंतु यह भी जानती हूं तन मन कर्म वचन से तुम सिर्फ और सिर्फ उसी के थे हमेशा से ' अपने वतन के .... और हो भी उसी के गए।
पर मैं ! मैं कभी नहीं भूल पाऊंगी !! मेरा तो आपके नाम का सिंदूर ही अमर हो गया । आपके उस छुअन का एहसास लिए संपूर्ण जीवन सिर्फ तुम्हारी यादों का एहसास लिए जिऊंगी।
मेरा शेष जीवन....
मेरी शेष अवस्था..
और मेरा संपूर्ण प्रेम! सिर्फ तुम्हारे लिए।
तुम्हारी
आस्था
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