होली विशेष
बाल कलम
होली का पर्व रितुराज बसंत के आगमन पर फाल्गुन की पूर्णिमा को आनंद और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इन दिनों रवि की फसल पकने की तैयारी में होती है। फाल्गुन पूर्णिमा के दिन लाग गाते-बजाते, हँसते-हसाते अपने खेतो पर जाते हैं। वहॉं से वो जौ की सुनहरी बालियॉं तोड़ लाते हैं। जब होली में आग लगती है तब इस अधपके अन्य को उसमें भूनकर एक दूसरे के साथ मिल बॉंट कर खाते हैं।
होली एक ऐसा रंग-बिरंगा त्यौहार है जिसमें सभी लोग पूरे उत्साह और मस्ती के साथ मनाते हैं। होली के त्यौहार की विशेष बात यह होती है कि इस समय प्रकृति भी अपने रंग में रंगी होती है हर तरफ प्राकृतिक खुशी होती है। नाच गाना, पकवान, नये कपड़े क्या नहीं होता इस त्यौहार में।
यदि हम यह कहें कि यह त्यौहार पूर्ण रूप से उल्लासों का त्यौहार है तो कही से गलत नहीं होगा। सभी एक दूसरे को रंग लगाने के लिए व्याकुल रहते हैं, भाभीयॉं घर में छुपती हैं, देवर और नंनद खोजते हेैं, एक अजीब मस्ती रहती है।
कही गुजिया, कही पापड़, दहीबडे इत्यादि देख कर ही मुहँ में पानी आ जाता है, इसकी सुगंध चारो तरह फैली रहती है।
होली में हम सभी एक दूसरे को रंग लगाने घरो तक पहुँच जाते हैं। एक दूसरो को रंग लगा कर उनका आशीर्वाद लेते है, मिठाईयॉं खाते हैं और मस्ती में घर लौट आते हैं।
माही सेन
अकबरपुर नवादा बिहार
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