सिर्फ तुम्हारे लिए स्वराक्षी की पाती

   *क्या से क्या हो गया,बेवफा तेरे प्यार में*
     *चाहा क्या क्या मिला,बेवफा तेरे प्यार में*
           सच है न देव्!कितनी मोहब्बत थी न हमदोनों के बीच में ।एक *दीया* तो दूजा *बाती*,लेकिन ये जान ही न सके कि *दीए* के संग जलते-जलते  *बाती* को एक दिन जल जाना होता है । *दीया* अधूरा सा ही सही मगर रह जाता है । आने वाले समय में शायद किसी का साथ पाकर रोशन भी हो जाता है, किंतु *बाती*,,,,, *बाती* का कहीं निशां भी नहीं रहता ।
     यही कहानी तो अपनी है ना देव्! तुमने *दीए* सा ही साथ रहकर हर पल मुझे जलाया और मैं जब पूर्ण रूप से जलकर तुम में खो गई तो झटके से मेरी राख को हवा में उड़ा दिया। अब यहां ना मैं हूं, ना मेरी राख और ना ही धुआँ..... अगर कुछ बांकी है तो वह है बस अंधेरा........ जिसकी कालिमा में  मिलकर मेरे स्वयं का अस्तित्व भी खो चुका है, लेकिन तुम हो........ तुम अभी भी हो.... इसी अंधेरे में कहीं छिपे से इस बात की  उम्मीद में कि कोई अन्य *बाती* आएगी और तुम्हारे इस खाली  *दीए* को अपना घर बना कर एक बार फिर तुम्हारी जिंदगी में रोशनी भर देगी ।
                        ठीक है मैं खुश हूं .........लेकिन....लेकिन मैं सोचती हूं देव्! कि आखिर *बाती* को तुम्हारा साथ देकर क्या मिला??? सारी जिंदगी तुमपर लुटा देने के बाद भी तो, उसे हवा के थपेड़े,बारिश के बूंदों की थाप और तुम्हारा गर्म जलता हुआ साथ........ऊपर से अंतर्मन की जलती हुई ज्योति....... ।क्या यही सब एक *बाती* की थाती है,जिसे समेटने के लिए *बाती* अपनी सारी जमा-पूंजी और जिंदगी तक को दांव पर लगा देती है.........।
         सुनती आई थी कि जो जितना मिट्टी से जुड़ा रहता है उतना ही विश्वासी होत है ..
....लेकिन तुम इतने निष्ठुर क्यों हो???? मिट्टी के बनकर भी स्वयं में बेवफाई समेटे हो........।
... खैर कोई नहीं...... तुम जियो..... हजारों साल से चली आ रही परंपरा को निभाते हुए......तुम जियो। तुम मनाओ  मेरी मौत पर खुशियां,जलाओ घी के *दीये*.....
..... लेकिन याद रखना देव्! हमारे बिना तुम्हारा कोई भी अस्तित्व नहीं है .....फिर चाहे तुम्हारे साथ मैं जलूं या फिर मेरी ही कोई दूसरी बहन *बाती*
          *@*स्वराक्षी स्वरा*


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