होली विशेष- 39
सुंदर सपनों की परछाईं दूर से नजर आई
धीरे-धीरे, हौले- हौले वो और पास आई...!
वो ज़िंदगी ही नहीं जीने की वजह नजर आई...!
हार- जीत व हर परख से परे... क्या....,
ज़िंदगी को रंग लूँ..?
मै तू और तू मैं.., जैसे सबकुछ भूल जाऊँ,
क्या बस तू ही तू नजर आऊँ...?
तो आज मैंने उनको पहन लिया है..!
अब तो चाहे जो हो जाए उनके रंग में
इस रूह को रंग लिया है..
कोयल की कुक जैसी, अमिया की महक
जैसी, रंग बिरंगी कलियों से रंग ले
लिया है... धरा और गगन बनके शीतल
पवन बनके, जीवन को अपने बासंतिक
कर लिया है
आज मैंने उनके रंग में ख़ुद को रंग लिया है...
इंदु
शिक्षिका पटना
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