होली विशेष- 42
होली ...रंगों और रागों से भरी
रंग भरी राग भरी राग सूं भरी री ।
होली खेल्यां श्याम संग रंग सूं भरी री ।।
मीराबाई की ये पंक्तियां मानो पूरे तन - मन को प्रेम और सिर्फ प्रेम की फुहारों से भिंगो देती है । न जाने कितनों ने कितनी रची है , मस्ती के गलियारों में रंगों की धूम मची है । तब भला कोई भी अछूता क्यों रहे ? होली के रंग यकीन मानिए आपको अपनों के करीब तो लाते ही हैं मगर उन रंगों से भी सराबोर करते हैं जिनकी कामना आपने कल्पनाओं में की थी ।
बसंत की विदाई और रंगारंग उत्सवों की दस्तक ही तो होली की पहचान है । होली ऐसा त्योहार है जहाँ चटख रंगों की चमक है , मौसम की शोख अदाएं हैं और दिल की चुलबुलाहट है । यह त्योहार अपने अंदर गंगा - यमुना की गहराई समाए हुए है । किसी को भी दीवाना बना दे, ऐसी इसकी रंगत है । होली एक ऐसा त्योहार है जिसमें ऊंच - नीच , जात - पात , स्त्री - पुरुष , बच्चे - बूढ़े , दोस्त - दुश्मन , अड़ोस - पड़ोस और देश - विदेश का भी भेद ख़त्म हो जाता है । इसके रंग से न साहित्य और कलाएं अछूती हैं , न राजनीति , धर्म , अध्यात्म और सिनेमा । लोक का उत्सव है यह !
होली का पर्व बसंत की मस्ती का चरम है । यह रबी की फसल के पकने का भी मौसम है जब किसान को प्रकृति से अन्न रूप में अपने श्रम का फल मिलता है । होली एक तरफ जहाँ हमारी कृषि प्रधान संस्कृति में प्रकृति के पुनर्नवा होने का प्रतीक है तो दूसरी तरफ यह प्रेम के प्रसार , शुभ और लोकमंगल की भावना का प्रतीक है । इस समय कभी मिट्टी से होरा की खुशबू आती है तो हवाओं में फगुवा के फाग गूंजते हैं ।
होलिका दहन में हम अपने जीवन की साड़ी नकारात्मकता और बुराइयों को जलाते हैं ताकि अगली सुबह सुनहरी , खुशनुमा और नए रंगों से चमकती दिखे । मथुरा और वृंदावन की होली आज भी रंगों से ही नहीं मन से भी खेली जाती है । यहाँ होली में कृष्ण और उनकी लीलाएं आज भी जीवित है । नृत्य है , गोपियों की अदाएं हैं और हर गली से निकलती है पकवानों की खुशबू ! तन - मन रोमांच से भर उठता है तभी तो ऐसी होली भुलाए नहीं भूलती ।
होली बड़ा ही सुंदर उत्सव है । हमारे देश में होली श्रीकृष्ण के नाम के साथ जुड़ा है । उनके सुंदर रूप स्वरुप और उनके जीवन - लीला के साथ जुड़ा है । इसी होली को आधार बनाकर निर्गुण परंपरा के संतों ने भी कहा है , हम भी होली खेलते हैं पर हमारी होली के रंग बाहर गुलाल के नहीं , ज्ञान के हैं , प्रेम के हैं ।सद्गुरु अपने ज्ञान के रंग शिष्य पर बरसाते हैं कि सुनते - सुनाते शायद कभी उसका सोया हुआ मन जाग जाए , कभी तो ये त्वरा हो कि जीवन को असार नहीं छोड़ेंगे , जीवन को कहीं मोड़ तक जरूर पहुंचाएंगे । इस तरह होली सबके लिए शुभ हो , ऐसी ही भावना सबों को रखनी चाहिए ।
आज कुछ संभ्रांत होली से मुग्ध नहीं होते । कोयल की कूक , प्राकृतिक रंगों की चटखता का उनपर कोई प्रभाव नहीं । उत्सव के उमंग उन्हें शोर, अल्हड़पन और फूहड़ता प्रतीत होती है । लेकिन आखिर कब तक अवसादों से घिरा रहना उन्हें भाता रहेगा , यह कह पाना मुश्किल है । हाँ ! मगर कुछ नियम समाज के भी है जिन्हें त्योहारों की मर्यादा से जोड़नी होगी । कुछ शरारतें सीमा पार करने लगे तो उत्साह रंगों का नहीं आपकी बेहूदा रंगीनियों का होगा । हर जश्न मर्यादित रहे तो शोभनीय और अनुकरणीय है । कुछ रंग आपके रहे , कुछ हमारे रहे और मिलकर प्रेम की पिचकारी रहे तो ऐसी होली के क्या कहने .....
मन डूबा सतरंगों में
रंगों में जो देखी वाटिका
उड़ - उड़ कर गाए ये वासंती रंग
फुहारों से जो खेली सारिका
छनन - छन बज रहे घुंघरू
हर ताल में झूमी जो तारिका
देश भूली , वेश भूली
हर क्लेश भूली
रंग भरी , राग भरी बन गई
होली में जो प्रेम की नाटिका।
सारिका भूषण
रांची , झारखंड
05 अप्रैल 2020 को महिला उत्थान दिवस पर आयोजित
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