सुनु के पापा सुनो सीमू की बात

पाती प्रेम की संख्या 7


सुनू के पापा, 
कभी आपको आपके नाम से बुलाया ही नहीं ।  सुनिए न कहकर ही काम चल जाता था और जब बेटी हुई तब 'सुनू के पापा' बन गए आप और ऐसे ही कभी आपको संबोधित कर लेती हूँ क्योंकि बाहर सुनिए कहने से सब सुन लेते हैं । शादी के 16 साल हो गए और पहचान शादी के एक साल पहले से थी पर समय कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। लगता है जैसेे कल की ही बात है। आपसे पहली बार ही मिली थी तबसे ही आपको अपना मान लिया था । ऐसा लगा था जैसे पिछले जन्म के बिछड़े साथी फिर  मिल गए ।  बिना प्रेम का इजहार किए ही प्यार हो गया और फिर सबकी सहमती और आशीर्वाद से शादी हो गई ।  जिसे चाहा वो मिल गया । आपसे प्यार कितना है़ शब्दों में बता सकती नहीं , पर आप जानते हैं सब यह मुझे है़ यकीन । आप मेरी जितनी परवाह करते हैं उससे आपका प्यार भी झलकता है़ ।  मेरे सामने नहीं पर हर किसी से मेरी तारीफ करते नहीं थकते हैं आप ।  दूसरे आपके प्यार का अहसास मुझे करवाते रहते हैं ।  कभी आप भी कह दीजिए ।  दिल में आपकी जो जगह वह सदा रहेगी ।  सिंदूर से जुड़ा हमारा यह रिश्ता कभी नहीं टूटेगा । मेरी अंतिम  साँस तक जिंदगी मेरी आपके ही नाम रहेगी।  


 


आपकी सीमू



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