प्रेम फरवरी
चुप-चुप आकर बैठे हो
कुछ तो बात करो हमसे,
मन की मन से बात करो
मौन धारण क्यों किया हमसे।
नैनों में बसती हो तुम
मन पर निशां तुम्हारे हैं,
दिल का मेरे हाल पता तुम्हें
मतवाले नैना तुम्हारे हैं।
प्रेम शब्द हैंअद्भुत
नैनों में तुम्हारे बसता हैं,
तभी संसार की हर वस्तुमें
प्रेम ही प्रेम दिखता हैं।
व्याकुल मेरा आज हृदय
कुछ गीत सुनाओ तुम मुझको
प्रेम बसा मेरे दिल में,
उसको स्वीकार करो तुम।
बहे रस छंदों की फुहारें
मन में संगीत बसता रहे,
वीणा की झंकारों से
मन में प्यार पलता रहे।
प्रेम शब्द हैं पावन धरा पर
स्वीकार करती आत्मा,
प्रेम ही प्रेम हो धरा पर
शान्ति की भावना।
धरा से लेकर गगन तक
ना, कोई शाम अधूरी हो,
मेरा -तेरा साथ रहे
बस, कामना मेरी पूर्ण हो।
स्वरचित
डॉ. प्रभा जैन "श्री "
देहरादून
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