प्रेम फरवरी
तुम अब भी गाओ पुराना वो गाना
छेड़ो न फिर से वो ही तराना ....
मुझे देख कर तुम थोड़ा मुस्कुराना
तुम्हें देख कर मेरा नज़रें चुराना
चलो फिर से लाएं वो गुज़रा ज़माना
छेड़ो न फिर तुम वो ही तराना...
किताबों में रखकर चिठ्ठी भिजाना
सूखे गुलाबों का वो नज़राना
सबसे अलग था जो अपना फ़साना
चलो फिर से लाएं वो गुज़रा ज़माना..
हौले से कंधे पर सिर को टिकाना
बालों में तेरा वो अंगुली घुमाना
गालों पर मेरे सुर्खी का आना
चलो फिर से लाए वो गुज़रा ज़माना...
सुबह का पत्ता था न दिन का ठिकाना
एक ही कप से चुस्की लगाना
घर में जाकर बहाने बनाना
चलो फिर से लाए वो गुज़रा ज़माना...
अभी तुम जवां हो और हम दिल नशी हैं
ज़ुल्फ़ों में देखो न सफ़ेदी का आना ..
गुज़र जो गया है पर गुज़रा नहीं है
याद आ रहा है वो बीता ज़माना..
चलो फिर से लाएँ वो गुज़रा ज़माना.
कान्ता अग्रवाल आसाम
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