तुम अमृत सुधा- शालिनी

गंगा महिम -रचनाकार संख्‍या -92


हे गंगे तू जीवन की संपूर्णता
        हर बूंद करती जीवन्त धरा
   चाँदी सी चमकती लहरें
     जीवन के पाप हैं धोती 
कल कल करती 
       संगीत बिखेरती
तुम ममत्व से भरपूर 
तुम अमृत सुधा
भागीरथ की देन
पर न सुरक्षित रख सकी
 इसकी ही संतान
कूड़ा कर्कट डाल
किया इसका जीना मुहाल
माँ कह,करते हम बहुत मान
   फेक गंदगी फिर करते अपमान
                  शालिनी खरे


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