तुम्‍हारी मम्‍मा

पाती प्रेम की


प्रिय मनु,


       हम यहां सकुशल हैं ।  आशा करती हूं तुम भी वहां व्‍यस्‍त और हमेशा की तरह अपने में ही मस्‍त होगी ।वो तुम्‍हारी गलबैंया, तुम्‍हारी नादानी भरी बातें और घर-आंगन को गुलज़ार करने वाली खिलखिलाहट को याद कर हर दिन, हर घंटे और हर मिनट बस यह सोचकर खुश हो लेती हूं कि अपनी लाड़ली को उड़ने के लिए पंख देने, आत्‍मनिर्भर बनाने के लिए इस दर्द को भी मुस्‍कुराते हुए ही भुलाना होगा ।


     मनु आज ना जानें क्‍यों तुम्‍हारे बचपन की कई यादें आंखों के सामने चलचित्र की भांति गतिमान हो उठी हैं ।  वो मेरे ऑफिस से घर आने पर तुम्‍हारा अपने नन्‍हें हाथों से मेरा चेहरा थाम ढ़ेर सारा प्‍यार करना, मानों ऐसे कह रही हो कि ‘’मम्‍मा, मुझे छोड़कर मत जाया करो, तुम्‍हारे बिना मुझे बहुत अकेलापन सा महसूस होता हैं ।‘’ थोड़ी बड़ी होने पर जब कभी मेरी तबियत नासाज़ सी लगती और मैं बिस्‍तर पर लेटी रहती तो तुम फेसक्रीम लेकर मेरे सिर पर अपने नन्‍हें-नन्‍हें हाथों से मसाज़ करने लगती और मुझसे पूछती –‘’मम्‍मा, अब तबियत ठीक हो गई ना आपकी ।‘’


     तुम अब और भी समझदार हो गई थी, मां का कुछ ज्‍यादा ही ध्‍यान रखने लगी थी तभी तो जब कभी घर पर अचानक कोई मेहमान आ जाता और तुम देखती कि उनको खाना परोसने के बाद मेरी थाली में कभी रोटी तो कभी सब्‍जी नहीं होती तो धीरे से अपनी थाली से एक-एक कौर मुझे खिला जाया करती, शायद सोचा करती कही मम्‍मी भूखी ही ना रह जाये ।


     कभी कभार पापा से बातें करते-करते किसी बात को लेकर मुझे उदास या नाराज़ देखते ही मेरा पक्ष लेते हुए पापा से भी भिड़ जाना, एयरपोर्ट पर हमें बाय करके दूसरी ओर पलटकर अपनी आंखों को धीरे से पोंछकर वापस हंसते हुए विदा लेना और भी ना जानें कितनी ही बातें तुम्‍हारे मन में मेरे प्रति असीम प्रेम को जाहिर कर जाया करती हैं ।


         आज इस पत्र के जरिये तुमको एक ऐसी बात कहने जा रही हूं, जो मैने तुम्‍हारे सामने कभी नहीं कही, वह यह कि जब तुम्‍हारे कैरियर चुनने की बात घर पर चल पड़ी थी तब तुमने पापा की दखलअंदाज़ी के बाद भी बिंदासभाव से खुलकर  सबके सामने अपना मत बताया कि तुम बेंगलोर वाले कॉलेज में ही जाना चाहती हो और अपनी मानमाफि़क स्‍ट्रीम में ही डिग्री लेना चाहती हो तो मेरा मन यह सुनकर बाग-बाग हो गया कि आज़ मेरी परवरिश सफ़ल हो गई, मेरी बेटी दूसरों की इच्‍छाओं के आगे अपनी खुशियों को न्‍यौछावर नहीं करेगी, अपने निर्णय खुद लेने में समर्थ हो गई हैं और अपनी काबिलियत के बल पर अपना लक्ष्‍य पाना और अपनी पहचान बनाना जानती हैं ।


      सच जी में तो आया कि तुझे बाहों में भर कर ढ़ेर सारा प्‍यार करूं पर समय की नज़ाकत को समझते हुए अपनी भावनाओं पर नियंत्रण किया और आज़ जब तुम वहां सेटल हो गई हो और अब धीरे-धीरे मैने भी खुद को व्‍यस्‍त रखने की आदत बना ली हैं, सो तुमको अपने मन की बात पत्र लिखकर भेज रही हूं आखिर तुम ही तो मेरी वेलेंटाइन हो जिसे मै अपने दिलों-जां से ज्‍यादा प्‍यार करती हूं ।


    हां तो मेरी वेलेंटाइन आज मुझसे एक वादा करो कि यूं ही हंसती-मुस्‍कुराती रहोगी और अपनी खुशियों की चाबी हमेशा अपने पास थामे रख अपनी जिंदगी को अपनी मूल्‍यों पर जियोगी  ।आज से एक माह बाद मैं और पापा तुमसे मिलने बेंगलोर आ रहे हैं, तब तुम कुछ अपनी कहना, कुछ मैं अपनी कहूंगी ।


तुम्‍हारी मम्‍मा, अंजली


 


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