तुम्हारी याद आती है-छाया

प्रेम फरवरी


अन्तर्मन में सुस्मृतियों के बीज रोज बो लेती हूँ।
याद तुम्हारी आती है तो थोड़ा सा रो लेती हूँ।


प्रश्न कई जब उठकर दिल में ,
करने लगते खींचातानी !
गढ़ते नहीं भाव भी आकर
फिर से कोई नयी कहानी !


नयनों में ले नीर सुनो तब, पीर सभी धो लेती हूँ।
याद तुम्हारी आती है तो थोड़ा सा रो लेती हूँ।


सौतन बनकर बैठ गयी है,
अपने द्वारे भले निराशा !
मगर छिपी इन संघर्षों में
जाने कैसी कोमल आशा !


पलकों में स्वप्निल इच्छाएँ, रखकर मैं सो लेती हूँ।
याद तुम्हारी आती है तो थोड़ा सा रो लेती हूँ।


दिखे नहीं अपनी भी छाया
धुंध कभी जब आकर घेरे !
पथ में बन अवरोध खड़े हों
पहरों तक घनघोर अँधेरे !


दीप जला तब नाम तुम्हारे,संग सदा हो लेती हूँ।
याद तुम्हारी आती है तो थोड़ा सा रो लेती हूँ।



छाया त्रिपाठी ओझा।


 


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आगामी 15 फरवरी से 28 फरवरी लेख कविता कहानी का विषय -होली



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