उन्हें निष्ठुर कहूँगी-पूर्णिमा शर्मा

पूर्णिमा शर्मा जी का खत उनकी फेसबुक वाल से बिना उनकी अनुमति के कारण भावनात्म


आज ठीक 4 महीने हो गए तुम्हारी विदाई को और ये 4 महीने मुझे चार जनम जीने जैसे लगे।उम्र के इस पड़ाव पर ही जीवनसाथी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है।बहुत सारे महत्वपूर्ण निर्णय लेने के लिए, मन के भाव साझा करने के लिए,बच्चों से संबंधित,खुद के भविष्य से संबंधित.... मैंने अब तक कोई निर्णय अकेले नहीं लिया था शादी के बाद से ही। अब अपनी जितनी बुद्धि है उसी के हिसाब से ले रही हूँ।अपना ख्याल,जो तुम्हारी ज़िम्मेदारी थी वह भी रख रही हूँ।अभी तक अपनी किसी दवा का नाम तक याद नहीं रखती थी सोचकर कि,"तुम हो ना,तुम जो देते हो वही मेरे लिए सही है।" अब पुराने पत्ते देखकर लाने लगी तो बच्चों ने नए सिरे से पूरा बॉडी चेकअप करवाया।अब जाकर दवाई का पर्चा बना है और आर्डर से मंगवाती हूँ, लेकिन सिर्फ मंगवाने से भी क्या होगा जब कई बार दवा लेना ही भूल जाती हूँ।


सब कहते हैं कि तुम कहीं नहीं गए,यहीं हो मेरे आस पास, मुझे महसूस भी होता है,इसीलिए ज्यादा रोती नहीं कि तुम्हें दुःख होगा।इस पर सबको यह भी लगता है कि,"अभी छमाही भी नहीं हुई और मैं इतनी जल्दी नॉर्मल कैसे हो गई?" अब नॉर्मल होने में और खुद को नॉर्मल दिखाने में अंतर होता है ना? लोग नहीं समझेंगे।
कभी कह देते हैं कि,"समय के साथ सारे घाव भर जाते हैं।" पागल हैं ना,तुम्हारी यादें घाव थोड़े ही हैं जिन्हें भरने की जरूरत हो।लोगों को सिर्फ कुछ कहना होता है, कह देते हैं बिना यह सोचे कि मुझ पर क्या बीतेगी?


कल तुम्हारे हॉस्पिटल गयी थी।सबकी आंखे तुम्हारे लिए नम थीं।ऑपरेशन के समय उन्हें हिम्मत बंधाने वाले तुम जो साथ नहीं हो।स्टाफ़ जिन्हें तुम नयी बातें सिखाते थे या कि कभी उनका इम्तेहान लिया करते थे, सभी तुम्हें मिस करते हैं।ये जो मुझे इतनी रिस्पेक्ट मिल रही है ना,तुम्हारे ही कारण।तुम्हारे मित्र अभी भी अक्सर आते हैं या फोन करते हैं कि मैं खुद को अकेला ना समझूँ और कोई भी जरूरत हो तो आधीरात को भी बुलाऊंगी तो वो आ जाएंगे। 
मुझे रोना बस पूजा के समय आता है और कभी उनसे झगड़ा करती हूँ कि मुझसे पहले तुम्हें क्यों उठा लिया।लोग भले ही कहें कि भगवान परीक्षा लेते हैं लेकिन मैं उन्हें ,"निष्ठुर " कहूँगी।


पूर्णिमा शर्मा


आगरा उत्तर प्रदेश।



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