प्रेम फरवरी
वह कहता है
मैं रात हूं उसकी
तो मैंने कहा
दिन क्यों नहीं
कहता है दिन का
उजाला चुभता है
तुम रात की शीतल चांदनी हो
लोग यहां दिल के उजाले में
चेहरे पर चेहरा लगाएं घूमते हैं
तुम ही तो हो जो
चांद के उजाले में
अपनी ही चेहरे में आते हो
कहता है दिन की भीड़ से
डर लगता है मुझे
तुम मेरी सुकून की रात हो
भीड़ में भी तनहा हूं
इश्क तो वही है
जब भी याद आए
या तो आंखों में आंसू दे जाए
या होठों पर मुस्कान
वह कहता है
मैं रात हूं उसकी
कंचन जयसवाल
नागपुर
89992344
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