प्रेम फरवरी
याद आते हैं वह दिन जब हम
हम हाथों से खत लिखा करते थे
एक एक अक्षर को जैसे प्रेम स्नेह
नेहा के पुष्प खिला करते थे
महीने में एक बार कोरे कागज
पर मन की बातें लिख पाते थे
जिनके नाम संदेशा होता था
वह खुशी सेफूले नहीं समाते थे
प्रिया की प्रेम भरी पार्टी पढ़कर
प्रियवर झूमकर इतराते थे
बात हो अपने संतान की तो
माता पिता दिल से मुस्कुराते थे
डाकिया डाक लाया का इंतजार
करना बहुत अच्छा लगता था
पोस्टकार्ड हो या लिफाफा मैं
लिखा प्रेम ही सच्चा लगता था
हमने माना खटके आने जाने में
वक्त की अपनी मजबूरी थी
मगर संबंध में पावन खुशबू
और ना दिल में कोई दूरी थी
कुछ अलग कुछ नादान पर
हर हाल में इंसान हुआ करते थे
याद आते हैं वह दिन जब हम
हाथों से खत लिखा करते थे
डॉ बीना सिंह दुर्ग छत्तीसगढ़
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