ये बात-शालिनी

 


मैं नदिया हूँ चंचल हूँ
मैं करती हूँ मनमानी
शीतलता देता है मेरा
निर्मल निर्मल पानी
       लहरो में मस्ती ही मस्ती
       उछल उछल अंगड़ाई से
       हर तंरग एक गीत सुनाती
       पतवारो की शहनाई से
      हर नौका कहती है मेरी
      एक अलग ही कहानी
शीतलता--------
       जलचर मेरी विरासत हैं
       तट,तीर्थ मेरी पहचान
       सिंचित खेत,बाग में करती
      चांहे सरसो धान
      मेरे किस्से रोज सुनाती
      बूढ़ी दादी नानी   
शीतलता---------  
        गंगा भी मैं यमुना भी 
        मैं सतलुज और कावेरी
       अविरल बहती हूँ न थकती
       यही है फितरत मेरी
       आज भी हर केवट निर्धन
       ये बात मुझे फैलानी
शीतलता----------
                     शालिनी शर्मा     गाजियाबाद उप्र


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