होली के रंग
तुझसे मिलने के बाद जो आई होली,
भूल गई मैं सुध बुध ऐसे तुझमें खोई |
वह फागुन की मस्ती में होली की बहार,
वो तेरा मुस्कुराना जैसे रंगों की फुहार |
दिल में उमंगे-तरंगे जगी ,
धरती भी दुल्हन के जैसे सजी |
बच्चों की टोली अंग भिगोने लगी,
भोर थी कभी अब शाम होने लगी |
नजर मेरे प्यार को ना जाने किसकी लगी,
तू मुझको ना मिला, मैं तुझको ना मिली।
यादों में बाकी है वो फागुन के रंग,
तेरे हाथों का एहसास,दिल में उठती तरंग।
चले दूर तुम गए जिंदगी होने लगी बेरंग,
सताते हैं दिन रात मुझे, पल बिताए थे जो तेरे संग।
होली आकर प्रेम की जड़े हैं गहराने लगी थी ,
मन के मैल को धोकर प्यार बिखराने लगी थी |
तेरी याद ने मुझको भी रंगों सा बिखराया फिज़ाओं में ,
मेरे प्यार को लिख दिया जिंदगी की वफ़ाओं में |
एक उम्र कम है साहब! तेरे प्यार में रंगने को ,
पूरी कायनात की उम्र लिखवा कर होली मिलने आऊँगी |
रंग जाऊंगी तेरे रंग में इस कदर मतवाली होकर,
बस तेरा अक्स बचे मुझमें खुद से मैं बिछड़ जाऊंगी |
देख लेना दिल-ए-नादान तुझसे मिलूंगी मैं इस कदर,
जर्रे-जर्रे में पिघल कर तुझ में ही घुल जाऊंगी।
शिवानी त्रिपाठी, प्रयागराज उत्तर प्रदेश
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