अकेलापन-हंसा शुक्‍ला

सरिता दस तैयार होकर गाड़ी निकालने गैरेज में गई तो ध्यान आया की कल तो विद्यालय में   उसका आखिरी दिन था आज से उसे स्कूल नहीं जाना है| अंदर आकर सोचने लगी अब तो स्कूल नहीं जाना है दिन कैसे  कटेगा इतने बड़े घर में अकेले क्या करेगी ?सरिता को लगा यही सच्चाई है एक समय के बाद इंसान अकेला रह जाता है | आज से तीस साल पहले ये घर कितना गुलज़ार हुआ  करता था  उसके पति राकेश,सास -ससुर ,तीन बच्चे बीच बीच में रिश्तेदारों का आना जाना लगा रहता था | जीवन के सफर में कुछ एक एक करके साथ छोड़ के चले गए और कुछ अपनी घर गृहस्थी में व्यस्त  हो गये| उसका  एक बेटा मल्टीनेशनल कंपनी में मैनेजर था दूसरा बीएसएनएल में और बेटी साइंटिस्ट,तीनो की नौकरी  के बाद सरिता सरिता अकेली हो गई थी स्कूल जाने से उसका समय कट जाता था छुट्टियों में बच्चो के पास चली जाती जाती  थी कभी बच्चे उसके पास आ जाते थे| रिटायरमेंट के बाद बच्चे  उसे अपने साथ रहने को कहते परन्तु इस शहर से घर से ऐसा लगाव था कि  वो महीने भर से अधिक के लिए इसे छोड़ नहीं पाती थी इस बार उसने इपीएफ और पेंसन का बहाना बना दिया और बच्चो के साथ नहीं गई|


दरवाजे की घंटी से उसका साल का सोचने का क्रम टूट गया दरवाजा खोली तो सामने माली के साथ उसका चौदह-पंद्रह बेटा खड़ा था| सरिता ने  माली से  पूछा ये स्कूल क्यों नहीं गया,माली ने बताया स्कूल बारह बजे है इसलिए एक घन्टे  काम में मेरी मदद करेगा फिर जायेगा| सरिता को अपने अकेलेपन को दूर करने का उपाय मिल गया वह माली,दूधवाले,प्रेसवाले और कामवाली महरी के बच्चों को निःशुल्क टूयशन देने लगी साथ ही उन्हें उनके रूचि  अनुसार दूसरे काम भी सिखाती| सवेरे सात बजे से सरिता का घर गुलज़ार हो जाता पढ़ाई के साथ बच्चे उसके लिए चाय, नाश्ता,खाना बनाते कलात्मक वस्तु  बनाकर उसका घर सजाते रात आठ बजे तक उसके घर में चहल-पहल रहता|सरिता बच्चो के व्यक्तित्व्  विकास के भी प्रयास करती उनका जन्मदिन मनाना,राष्ट्रीय त्यौहार और अन्य महत्वपूर्ण दिन में प्रतियोगिता कराना,वह बच्चो को स्कूल के विभिन्न गतिविधिओ में भाग लेने के लिए प्रेरित करती और उसकी तैयारी भी कराती जरुरत होने पर वह बच्चो की आर्थिक मदद भी करती थी| दस बच्चो से शुरू हुआ यह क्लास सौ लोगो के परिवार में तब्दील हो गया अब सरिता पहले से अधिक व्यस्त हो गई थी| आज बेटी का फ़ोन आया माँ आप अकेले बोर हो जाती होंगी थोड़े दिन के लिए मेरे पास आ जाइये सरिता ने मुस्कुराते हुवे जवाब दिया अकेलापन कहां यहाँ मेरा सौ लोगो का परिवार है तुम जल्दी आओ तुम्हे परिवार के नए सदस्यों से  मिलवाउंगी! सरिता ने अपने अकेलेपन को उत्सव में बदल लिया था और जीवन के दूसरे पड़ाव को बेहतरीन तरीके से जी रही थी|   


 


डॉं हंसा शुक्‍ला भिलाई



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