अन्‍तराष्‍ट्रीय महिला दिवस पर आयोजित लेखन प्रतियोगिता का परिणाम

साहित्‍य सरोज पत्रिका द्वारा अन्‍तराष्‍ट्रीय महिला दिवस पर आयोजित लेखन में प्रतियोगिता में कुल 54 रचनाएं प्राप्‍त हुई। रचनाओं में अधिकाशं तौर पर महिलाओं को अबला, सीता और न जाने क्‍या बताते हुए उनके ऊपर अत्‍याचार की ही  गाथा पढ़ने को मिली। रचनाओं में नारी की खुद की बात, खुद का महत्‍व, अपने सपने, उड़ान की बात पूरी तरह से नदारद रही। अधिकाशं रचनाओं ने या तो नारी को रूलाया या तो नारी को हक मॉंगते दिखाया या उनके अपना वजूद इतिहास के माध्‍यम से बताते दिखाया। आज की नारी कैसे समाज को चला रही है, कैसे समाज को दिशा दे रही है, किस प्रकार वह आने वाले नस्‍लों की सुधार के लिए कार्य कर रही है। यह बहुत ही कम रचनाओं में देखने को मिला। यही नहीं नारी समाज से अधिक घरेलु हिंसा से प्रभावित हो रही है, इस सच को भी किसी ने स्‍वीकार नहीं किया। यदि आई हुई रचनाओं की समीक्षा किया जाये तो इस बार आई रचनाओं में निराशा ही निराशा थी। नारी के कार्यो को दिखाना, उनके हौसले को बढ़ाना, उनकी चालाकी के द्वारा घर को सजाना गायब था। हर रचना पुरूषों से बराबरी, लड़को से बराबरी की बात करते, हक मॉंगते दिखाया। जो कि अनुचित है। समाज में पुरूषो का अपन अलग स्‍थान है नारी का अपना अगल स्‍थान है फिर यह समान्‍ता की बात, श्रेष्‍ठता की बात क्‍यों।

अधिकांश रचनाकारों ने महिला दिवस पर मॉं के नाम प्‍यार और मॉं को केन्‍द्र बना कर रचनाएं भेज दी। मॉं के नाम पर भेजी गई रचना इस प्रतियोगिता के नियमो का पालन नहीं करती थी लेकिन पत्रिका अपने स्‍वभाव से मजबूर है वह मॉं के नाम पर आई किसी भी प्रकार की रचना, किसी अवसर पर आई रचना अस्‍वीकार नहीं कर सकती है इस लिए उसे स्‍वीकार किया गया और प्रतियोगिता में जगह दिया गया।


यदि हम कुछ रचनाओं की बात करें तो पटना से मिन्‍नी मिश्रा की लघुकथा होशियार घरनी जरूर कामयबा रही, उनसे नारी की कुशलता अपनी बुद्वि से अपनी होली को यादगार बनाने के लिए जिस प्रकार घरेलु संसाधन का प्रयोग किया वह वास्‍तव में महिलाओं के लिए एक सीख रहा।
गोरखपुर से डा0 तारा सिंह अंशुल ने अपनी कविता कविता के प्रारंम्‍भ में जरूर नारी के मनोबल को उच्‍चे मनोबल पर दिखाया लेकिन अंत जाते जाते वह भी उसी पुरानी पद्वित में अपनी कविता को समेट लाती है।
टुन्‍डला से सुनीता बौद्व ने महिला दिवस ने महिला को, समाज को एक जगह रखते हुए अपनी ग़ज़ल मे माध्‍यम से मनोरंजन करते हए कुछ संदेश देने की कोशिश किया, परन्‍तु यह एक कर्णप्रिय ग़ज़ल होकर रह गई।
रायपुर छत्‍तीसगढ़ से सीमा निगम ने अपने लेख में परम्‍परा से हट कर नारी द्वारा अपने परिवार, अपने विकास में कार्य करने की योजना दिखाई गई है, उसमें बताया गया है कि नारी कैसे अपने कार्यो से अपने आगे की पीढ़ी को अपनी संस्‍कृति की धरोहर दे देगी। यह लेख लेखन एवं विषय की द़ष्‍ट्री से कई मायनो में अगल रहा । इस लिए इस लेख को द्वितीय स्‍थान दिया जाता है।
मुम्‍बई से निक्‍की शर्मा की आई रचना ने सीधे तौर पर नारीयों में प्रेरणा भरने का कार्य किया। रोते हुए नहीं दिखाया मगर वह भी डा0 तारा सिंह अंजुल की तरह 7वें अन्‍तरे में अपने उद्वेश्‍य से भटक कर समाज से प्रश्‍न कर बैठती हैं।
जयपुर राजस्‍थान से लिखी प्रियंक गाैड़ ने शिल्‍प से अपनी रचना नारी में शिल्‍प से जरूर प्रभाव छोड़ा परन्‍तु वह भी केवल नारी की प्रचीन गाथा और क्‍या है नारी बताने में लगी रही, जो आज कल मंचों पर विशेष रूप से चल रहा है।  
  वैष्‍णवी पारसे की मेरे कितने ही रूप रही जिसमें नारी ने खुद के बारे परम्‍पारिक बातें कही। समान्‍ता के अधिकार और आजादी की मॉंग करती रचना पाठक को बॉंधने में कितनी सफल होगी यह पाठक की सोचं पर निभर्र है।
संगीता शर्मा की आसान शब्‍दो में लिखी रचना लाज निभाती बेटियों ने प्रभावित किया, रचना में जिस प्रकार बेटियों की चंचलता, उनका बालपन प्रस्‍तुत किया उसकी सुन्‍दरता हृदयस्‍पर्शी थी।
बदायँ से सीमा चौहान ने अपनी शानदार शिल्‍प के सहारे अपनी रचना अपने ललाट पर लिखी अलौकिक भाग्‍य रेखा को रचना प्रारंम्‍भ किया वह अच्‍छा लगा, बाते गम्‍भीरता से कहने की कोशिश की गई, जिससे पाठक पढ़ने पर मजबूर हुआ। इस ने रचना ने महिला दिवस के लिए सर्वश्रेष्‍ठ रचनाओं में जगह जरूर बनाई परन्‍तु स्‍थान प्राप्‍त करने में असफल रही।
हिमानी भट्ट ने अपनी रचना बड़ो का आशीर्वाद ने जरूर नई परम्‍परा को दिखाने का प्रयास किया। ऐसी बात नहीं कि नारी सर्वत्र उपेक्षित है उसके भावो की योग्‍यता की कद्र भी देश में हैं उन्‍होनें कार्वी के माध्‍यम से इस चीज को दिखाया कि कैसे परिवार के सहयोग से उसके सपने पूरे होते है नर बिन नारी, नारी बिन नर की धारण को सिद्व करने की सफल कोशिश रही। वंदना अर्गल की अपनी लघुकथा की नायिका रेवती के जबाब के माध्‍यम से जिस सोच में खुद को डुबाया है वह सोच अब धीरे धीरे अपना स्‍थान खोती जा रही है। उस सोच को खुद वह भी लेखन में सोच लें लेकिन आम जिंन्‍दगी में दिखावा अब समाज में चीनी की तरह धुलता जा रहा है। इसे निकाल पाना अंसभव तो नहीं परन्‍तु कठिन जरूर हैं। आपकी लघकुथा नारी दिवस से अलग उत्‍तम रचना नहीं।


राजस्‍थान की पुनीता भारद्वाज ने महिला दिवस पर अपनी आप बीती प्रस्‍तु‍त की संस्‍मरण के सहारे उन्‍होनें अपने ऊपर घटित घटनाओं के प्रकार, मंजर का वर्णन करते हुए लिखा है कि कैसे वह अस्‍तलात पहुँची है वहॉं सहारा लेती पूजा करती हुई किस प्रकार समापन होता है। उनके लिखने का अंदाज बिल्‍कुल ऐसा है जैसे पाठक के ऑंख के सामने घटना हो रही है। उनकी सैली उनके अनुभव वह एक उत्‍साहवर्धन करने वाला संस्‍मरण लिखने के लिए तृतीय पुरस्‍कार प्रदान किया जाता है।


पटना बिहार से माधुरी मिश्र ने अपने लेख में अत्‍याचार, अबला की कहानी न दुहराते हुए सीधे तौर पर महिलाओं को उनकी जिम्‍मेदारीयों का बोध कराया है। उन्‍होनें सीधे तौर पर महिलाओं को समाज के बिगड़ने का आधा आरोपी बना दिया है। उन्‍होेनें महिलाओं को सावधान करते हुए कहा है कि यदि वह अपनी बेबसी की आसूँ बताते हुए घर को नहीं सुधारा तो वह भी बच नहीं पायेगी। निसंदेह यह रचना महिला दिवस की सोच को पूर्ण करती हुई एक अच्‍छी रचना है।


कोलकता पश्चिम बंगला से  डा0 विजेता साव ने बिल्‍कुल उग्र रूप अपनाते हुए साफ कर दिया कि हमें न इतिहास से मतलब है, न वर्तमान से ना तो नारी के दिखाये जाने वाले रूप से, उन्‍होनें कहा कि नहीं चाहती सीता बनना नहीं चाहती न धरती से धरती में समाना,रचना के माध्‍यम से नारी को नये रूप में, इतिहास निर्माता के रूप में दिखाते हुए अबला की जगह सबला के रूप में चित्रांकन किया गया है। निश्चित रूप से यह रचना श्रेष्‍ठा सूची में अपना स्‍थान ईमानादारी से बनाने में सफल हुई।
कंचन जायवाल ने अपनी लघुकथा के माध्‍यम से अमीर और गरीब दो गर्भवती महिलाओं के बीच का अंतर मंजू की सोच के माध्‍यम से दिखाने की कोशिश की है। सही है कि एक ही प्राकृतिक लीला को दो तरह के लोग दो तरह से झेलते हैं मगर केवल भौतिक सुख के आधार पर प्रकृति इस लीला में दोरंगा व्‍यवहार करेगी यह आज तक संभव नहीं हैं। हजारो उदाहरण मौजूद है। महिला दिवस पर आई इस रचना का स्‍वागत हैं एक सशख्‍त लेखनी के माध्‍यम से लघुकथा के मानको को पूरी करती अच्‍छी रचना है।
सागर से प्रतिभा द्विवेदी ने नारी के अलग अलग रूप में अलग अलग कार्यो का वर्णन प्रस्‍तुत किया है, आपकी रचना में नारी के रूप का वर्णन तो है मगर एक नारी की आत्‍मा की कहानी, उसके हौसलें, उसकी योग्‍यता का जिक्र कर पाने में आपकी लेखनी पूरी तरह असफल रही है आपने रटी रटाई परिपाटी को शानदार शिल्‍प देकर सजाया है यह इस रचना की विशेषता है।/
मिर्जापुर से डाक्‍टर उषा कनक पाठक की चिर स्‍पृहा निश्‍चित तौर पर प्रभावित करती है जिसमें स्‍त्री अपनी वजूद तो बना कर रख रही है लेकिन साथ में वह अपने वर से प्रेम का प्रदर्शन कर रही है इस रचना में न  नारी अबला न पुरूष प्रताडित करने वाला न समाज न देश केवल नारी खुद विद्वमान है वास्‍तव में यह रचना महिला दिवस की श्रेष्‍ठ रचनाओं में एक है।
भागलुपर से बिहार से आई सरिता सिंह की तो नारी उत्‍थान की जपते रहे माला ने पूरी तरह महिला दिवस की पोल खोल कर रख दिया। महिलाओं की घरेलू समस्‍याएं, घरेलू हिंसा, उनके काम में आने वाली बाधाओं सभी का जिक्र उन्‍होनें अपनी लेखनी में किया। सबसे बड़ी बात यह रही कि वह एक आम घरेलु महिला हैं जिनका लेखन से कोई वास्‍ता नहीं, फिर उन्‍होनें जिस प्रकार यह लेख लिखा है उसमें गुस्‍सा, ठहराव, व्‍यंग्‍य,  उपाय का झलकाव है। निश्‍चित तौर पर यह रचना इस आयोजन की सर्वश्रेष्‍ठ रचना रही, जिससे प्रथम स्‍थान के लिए नामित किया गया।
 परिणाम
अन्‍तराष्‍ट्रीय महिला दिवस 2020 पर प्रथम तीन स्‍थान पर रही रचना ।
प्रथम स्‍थान - श्रीमती सरिता सिंह भागलपुर बिहार
द्वितीय स्‍थान - श्रीमती सीमा निगम रायपुर छतीसगढ़
तृतीय स्‍थान - पुनीता भारद्वाज भीलवाड़ा राजस्‍थान


सात्‍ंवना - डा0 विजेता साव कोलकता, माधुरी मिश्रा पटना, मिन्‍नी मिश्रा पटना, हिमानी भट्ट, सीमा चौहान, संगीता शर्मा, निक्‍की शर्मा मुम्‍बई, तारा सिंह गोरखुपर, प्रियंका गौड, सीता देवी राठी।


 



 


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