अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष
मंजू , ठेकेदार से इजाजत लेकर पेड़ की छांव में बैठ गई, साड़ी के पल्लू से अपना पसीना पोछते हुए बाजू में रखें मटके से पानी निकाल कर पीने लगी, तभी उसकी नजर बंगले वाली मेम साहब पर गई वह भी पेट से थी । तभी उसके कोख में पल रहे शिशु ने अपनी मां को लात मारा, मंजू का ध्यान अपने पेट पर गया वह सोचने लगी, मेम साहब की जिंदगी कितनी अच्छी है, उन्हें अच्छा-अच्छा खाने को मिलता है, उनकी इस अवस्था में कितनी देख बाल हो रही है और मैं यहां इस अवस्था में इस कड़ी धूप में ईट उठा रही हूं। उनके लिए अच्छे दवा खाने हैं और मैं नॅंवा महीना चढ गया पर दवा खाने का मुंह तक नहीं देखा । हाय रे मेरी किस्मत मेम साहब का बच्चा भी कितना सुंदर होगा ना और मेरा बच्चा इस कड़ी धूप के कारण, खैर ! यही सब प्रश्न उसके मन में उठ रहे थे की भगवान ने दोनों मांओं की किस्मत में इतना फर्क क्यों किया, तभी उसके बच्चे ने फिर पेट में लात मारी, उसका ध्यान फिर अपने बच्चे पर गया फिर सोचने लगी कितनी भी आज असामनता हो एक तो समानता ऊपर वाले ने बराबर रखी है कि मैं भी अमीर मेम साहब की तरह मां बन सकती हूॅं । तभी ठेकेदार ने जोर से आवाज लगाई 'अरी ओ मंजू कहा मर गई पेट का बहाना कर के जब देखो तब गायब हो जाती है, अभी शाम को रोजी लेने बराबर सामने खड़ी हो जाएगी ।' मंजू झट से अपने सपने से बाहर आई और अपनी साड़ी का पल्लू कमर मे खोसा और सर पर गठरी बांध कर फिर लग गई ईंट पहुंचाने में ।
कंचन जायसवाल
05 अप्रैल 2020 को महिला उत्थान दिवस पर आयोजित
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