बचपन की घटना -दिनेश

"बचपन की एक घटना"
बचपन की एक घटना है तब मैं शायद तीसरा में था ।हमलोगों का स्कूल पलानी यानी झोपड़ी में चलता था।एक दिन बारिश हो रही थी।बच्चे बहुत कम आये थे।मास्टर भी एक हेड मास्टरनी।उनका घर स्कूल के पास ही था इसलिए उनको तो आना  ही था। बारिश के वजह से पूरा स्कूल एक ही झोपड़ी में आ गया था। उस रोज पढ़ाई न कर के दीदीजी (मास्टरनी को देवी जी न कह कर के सभी बच्चे दीदी जी या दी जी कहते थे।) बच्चों को कहानी सुना रही थी और बीच-बीच में प्रश्न भी कर रहीं थी। इसी सिलसिले में उन्होंने पूछा-" अच्छा बच्चों बताओ बंदरगाह किसे कहते हैं।"
मास्टरनी का भतीजा जो उनके भसुर 
का लड़का था नाम था मंकेश्वर उठकर बोला-" जहाँ बन्दरों का झुंड हो उसे बंदरगाह कहते हैं।"
कहने की जरूरत नहीं पूरा बहुत देर तक हँसता रहा ।मास्टरनी जी झेंप गई कि वो क्या पढ़ाई हैं कि उन्हीं के घर का लड़का ऐसा जवाब दे रहा है।
दरअसल स्कूल से थोड़ी दूर पर आम का बगीचा था हमेशा बंदरों के झुंड जमा रहता था और छुट्टी के बाद बच्चे वहाँ जमा रहते थे ।इसलिए शायद वो ऐसा जवाब दे दिया था।
बाद में तो सभी बच्चे कई दिनों तक उसे चिढ़ाते रहे।
बहुत उम्र होने के बाद भी हमलोग उन्हें कभी-कभी कहते थे "अच्छा मकेसर चाचा बंदरगाह किसे कहते हैं।" (गाँव के रिश्ते से वो चाचा लगते थे।) तो हँसते-हंसते कहते थे -"मार खाये के मन कर¢ता का।" और सभी हँसने लगते थे।
दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" कलकत्ता


एक लड़का एक लड़की की तरफ नज़रें गड़ाये देख रहा था।
लड़की बोली-"चलो मैं तेरे घर शिकायत करूंगी की तुम मुझे घूर-घूर कर देख रहे थे।"
लड़का बोला-"घर में मम्मी पापा नहीं हैं।"
लड़की-"कोई तो होगा?" कह कर गई शिकायत करने।
घर में लड़के की दादी थी।
लड़की बोली-"दादी अम्मा ! दादी अम्मा तेरा पोता मुझसे आँखे लड़ता है।"
बुढ़िया गौर से लड़की को ऊपर से नीचे तक देखने के बाद आहें भर कर बोली -"क्याssss बताऊँ बेटी लड़ाना इस घर की पुरानी आदत है। इसके दादा जी सांड भैंसा लड़ाते थे। इसके पिता जी तीतर बटेर लड़ाते थे। बुरा मत मानना बेटी अब जमाना बदल गया तो ये आँखे लड़ने लगा।



दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" कलकत्ता



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