भावनाओं की खुदकुशी-प्रीति

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष


जहाँ कटुवचन हृदय छलनी करते हैं,
जहाँ जीकर भी पल पल मरते हैं,
हृदय में शूल चुभने लगते हैं
धड़कनें खुदकुशी कर लेती हैं।।


जहाँ हृदयों के बीच दीवार होती है,
कभी नहीं भरने वाली दरार होती है,
प्रेम अन्तिम साँसे गिनने लगता है,
चाहतें खुदकुशी कर लेती हैं।।


जहाँ नारी का अपमान होता है,
मानव बर्बर शैतान होता है,
अनैतिकता के हाथ चीरहरण करते हैं,
पवित्रता खुदकुशी कर लेती है।


जहाँ लाज के गहनों का त्याग हो,
जीवन भोग विलास की आग हो,
जब रक्षक ही भक्षक बन जाते हैं
आबरू खुदकुशी कर लेती है।


जहाँ भोर होने की कोई आस न हो,
उम्मीद का कोई दीपक पास न हो,
जहाँ तिमिर दूर तक पसरा हो घना,
रौशनी खुदकुशी कर लेती है।


जहाँ कर्म करने का कोई फल न मिले,
पथिक हो प्यासा और जल न मिले,
जब दूर तक जलता रेगिस्तान सा हो जीवन
आशा खुदकुशी कर लेती है।


जहाँ खुशी का मुखोटा लगाना पड़ता है,
दुःखों में मुस्कुराना पड़ता है,
जब नेत्र सजल रहने लगते हैं
हँसी खुदकुशी कर लेती है।


जहाँ विकृत मानसिकता भ्रष्ट आचरण हो,
जहाँ वीभत्स सारा वातावरण हो,
जब बुराई की विजय होने लगती है,
अच्छाई खुदकुशी कर लेती है।


जब चाँदनी तन जलाने लगती है,
 जीवन अग्नि झुलसाने लगती है,
जब चंदन भी लावा की मानिंद लगे,
शीतलता खुदकुशी कर लेती है।


जहाँ किसी बात की भी सुनवाई न हो,
मन के विचारों में सफाई न हो,
पाषाण हो जाये जब मानव हृदय,
दया खुदकुशी कर लेती है।


जहाँ भावनाओं का कोई मोल नहीं होता
प्रेम स्नेह का एक बोल नहीं होता,
जहाँ असुर तांडव करने लगते हैं,
शालीनता खुदकुशी कर लेती है।


जहाँ पशुवत मानव का व्यवहार हो,
दूर तक व्याप्त घना अंधकार हो
धरा पर तिमिर का ही विस्तार हो
चन्द्रिका खुदकुशी कर लेती है।


जहाँ पापी जन देवता कहलाते हैं,
नारी की सहनशीलता आजमाते हैं,
जब निर्दोष की अग्नि परीक्षा होती है,
कोई सीता खुदकुशी कर लेती है।


जहाँ घृणित सोच को सहते रहते हैं
कृष्ण आएंगे बचाने कहते रहते हैं,
दुःशासन दुर्योधन हर मोड़ पर मिलें,
आस्था खुदकुशी कर लेती है।


जहाँ फैसला करने वाले वही लोग चन्द हो,
सच्चाई जंजीरों में बंद हो,
जब शब्द निष्प्राण होने लगते हैं,
आवाज़ खुदकुशी कर लेती है।


जब हृदय में करूणा ममता न बचे,
स्वयं को नियंत्रित करने की क्षमता न बचे,
मानव पशु में परिवर्तित हो जाये,
मानवता खुदकुशी कर लेती है।


जहाँ छलनी तन हो बलात्कार से,
बोध न हो आत्मा के भी उद्गार से,
जब शीलभंग हो जाये सड़क पर
निर्भया खुदकुशी कर लेती है।


जब मासूमियत से दुर्व्यवहार हो,
अबला पर होता नित अत्याचार हो,


बुराई के दलदल में धँसा संसार हो,
सहनशीलता खुदकुशी कर लेती है।


जब मन में ईर्ष्या और द्वेष हो,
जीवन में लड़ाई, झगड़ा क्लेश हो,
जब नफरतों के अंकुर पनपने लगें,
प्रीत खुदकुशी कर लेती है....


प्रीति चौधरी (मनोरमा)
बुलन्दशहर,उत्तरप्रदेश


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