याद आ रहा है आज से मात्र तीस चालीस वर्ष पहले सुबह की पहली किरण के साथ ही चींचीं करती छोटी-छोटी फुदक चिरैईया घर की मुंडेर पर आ जाती थी उसकी चहचहाहट से पूरा वातावरण उत्साहित हो उठता था और वो घड़ी के अलार्म की तरह हर बच्चे की आंख की नींद उड़ा देती थी।आंगन में मां जब पिसना करती थी इन गोरैयों का झुंड आ जाता था और अपनी चोंच में दाना तिनका लेकर उड़ जाता था अपने घोंसलों की तरफ जहां उनका बसेरा होता था।उस नन्हीं सी चिड़िया का आना और जाना बच्चों के मन में कितना उत्साह भर देता था यह केवल महसूस ही किया जा सकता है वर्णन नहीं ..।
वह गोरैया कितनी कर्मठता से पेड़ों की डालियों पर खुद ही घोंसले बनाती और खेत खलिहान घर आंगन से दाना जिनका इकट्ठा कर पर्यावरण को गुंजायमान कर ती रहती।पर हमने पहले तो पेड़ों को ही काट दिया और आज उस गौरैया की याद में नकली घोंसलों को छतों पर लगाकर उसका इन्तज़ार कर रहे हैं क्या वह वापस आयेगी..?? नहीं ऐसे नहीं !वह स्वाभमानी चिड़िया अपना घोंसला खुद बना देगी बस तुम उसके पेड़ उसे वापस दे दो।
उसे बुलाना है तो बोगनविलिया की झाड़ियों को थोड़ी सी जगह दे दो ।दे दो फिर से हरे भरे पेड़ों की बगिया जिसमें ये गौरैया बना सके अपना बसेरा और दे सके फिर वहीं चहचहाता हुआ सवेरा और हमारे बच्चों को मुस्कराहट।।
सीमा चौहान
बदायूं
9410022517
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