मां! आज मैं बहुत खुश हूं
यद्यपि अब मैं तुम्हारे पास नहीं हूं
पर मां हो तुम मेरी
बेटी थी मैं तुम्हारी
मेरे कहे अनकहे का
तुमसे क्या है कुछ छिपा हुआ??
शब्दों से है जो परे वही
प्रेम है तुममें मुझमें घुला हुआ
तभी तो तुमने हार ना मानी
बरसो लड़ती रही मेरी लड़ाई
भूल जाती शायद यह दुनियां कब की
तार-तार हुए मेरे जिस्म और रुह की
बर्बरता से भरी दरिंदों की कहानी पर मां !!
तुम्हारे ही हौसले विश्वास और साहस की
यह है निशानी सात साल बाद आज की सुबह
सच में लगी सुहानी
मेरे मुजरिमों को लटकाया वहां
जहां कि तुमने थी ठानी
अन्याय ने आज फिर मुंह की खाई
न्याय ने अपनी ध्वजा लहराई मां!!
एक बार फिर जीत गई तेरी मेरी प्रीत
नाम कभी प्यार से रखा था मेरा तूने ' निर्भया'
पर सच तो यह है मां !!
तू रही सदा भयमुक्त 'निर्भया '
अड़ी रही डटी रही
बेटी के हित खड़ी रही
तन तो मेरा नहीं रहा
पर मन मेरा ,आत्मा मेरी करती है
तेरे चरणों का वंदन
हर जन्म में तू ही मिलना मां
तुझे है शत-शत नमन
विगत वर्षों में हर दिन देखा है
मैंने तुम्हें रोते बिलखते
आज तुम भी मुस्कुरा लो
मेरा साथ याद करके
मैं थी मैं हूं मैं रहूंगी
हर बेटी में तुम्हारी लाडली बनके
डाक्टर विजेता साव कोलकता
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