दिखावा-वन्दना

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष


 शादी के समारोह में  बारात स्वागत के पश्चात  सभी आपस में बातचीत में  तल्लीन हो पार्टी का लुत्फ उठा रहे थे।सुधा भी भव्य समारोह मे शामिल हो मेहमानो से बातों मे मसरुफ थी कि अचानक उसके  कंंधो पर मुलायम सा स्पर्श  महसूस हुआ कानों में कुछ पहचाना सा स्वर सुनाई पडा़ हैलो सुधा तुरंत पलट कर देखा तो  सामने बचपन की सहेली रेवती खडी़ थी।दोनो काफी अरसे बाद मिल रहीं थीं।रेवती बहुत ही सुंदर सिल्क की साडी़ और स्वर्णाभूषणो मे  अप्रतिम  सुंदरी लग रही थी।ढेरों बातचीत के बाद दोनो ने परस्पर बहुत सी यादें साझा की।सुधा ने कहा यार तुम तो बहुत ही खूबसूरत दिख रही हो,इन स्वर्णाभूषणों में तो तुमकिसी राजकुमारी से कम नही लग रही हो।यह सुनते ही रेवती के चेहरे के भाव बदल गये ।गंभीर हो उदास सा मुंह बनाकर बोली अरे सुधा यह सब दिखावा है,करना पड़ता है।।मैं समझी नही सुधा ने पूछा मतलब क्या है तुम्हारा अरे येसब कुछ तो मेरी सास ने सिर्फ शादी में पहनने के लिए दो तीन दिन के लिए दिये हैं।हमेशा तो मैं सिर्फ नकली गहनो से ही काम चलाती हुँ।शादी में रिश्तेदार,परिचित,समाज के रसूकदार लोग आते हैं ना तो दिखावा तो करना ही पड़ता है।रेवती का यह जवाब सुनकर मैं निरुत्तर  सी विचारमग्न हो सोचने लगी।क्या समाज में इस झूठे दिखावे की आवश्यकता है क्या?आखिर कब एक महिला अपनी इच्छानुरूप  पहन ,ओढ़ पायेगी।क्या विचारों की आजादी के साथ अपनी समस्त इच्छाओ की पूर्ति
मे हमारे समाज की ही महिलाऐं मददगार साबित होगीं या ये सिलसिला यूँ ही अनवरत चलता रहेगा।समय की पुकार है उसे अपना अधिकार मिलना ही चाहिए।
 


वन्दना  अर्गल ।


05 अप्रैल 2020 को महिला उत्‍थान दिवस पर आयो‍जित
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