होस्टल से निकल कर हम
ज्यों ही पहुँचे बस स्टैण्ड
टिकट खिड़की पर खड़े हमें
मिल गए एक श्रीमान
मिल गए एक श्रीमान
उम्र बीस-इक्कीस की होगी
हमने सोचा कहाँ अभी
उनकी शादी हुई होगी
बात करने को हमने उनसे
ज्यों ही हिम्मत जुटाई
न जाने कहाँ से भागती हुई
मैम नपतुल्ला आई
मैम नपतुल्ला आई
हिलाए नयन कटोरे
मेरे पति तो हैं बड़े भोले
क्यों डाल रही हो इन पर डोरे?
खैर हमने वहाँ से नजरें हटा दी
सामने की सीट पर लगा दी
सामने एक सज्जन बैठे
रेवड़ियाँ खा रहे थेऔर
मुझे अपलक निहार रहे थे
हमने सोचा क्यों न यहीं
किस्मत आज़माई जाए
अल्लाह करे कोई मुसीबत न आए
होनी कब रूकी है,हो के रही
न जाने कहाँ से मैम अटपटी आ मरी
इससे पहले हम समझ पाते
कि मामला क्या है
वो झट बोली, मेरा पति सिर्फ मेरा है
हम वहीं बैठे कुछ सोच रहे थे
अपनी किस्मत को कोस रहे थे
सामने टिकट खिड़की का
दृश्य नजर आ रहा था
वहाँ एक शरमाया सा लड़का खड़ा था
शरमाया सा लड़का खड़ा था
उम्र अठारह -उन्नीस की होगी
बोला, क्या मेरी भी टिकट ले दोगी
हमें उस पर तरस आया
अपने साथ उसका भी
सीट नम्बर कटवाया
जाने कैसा इत्तेफ़ाक़ था
हमारा सीट नम्बर साथ-साथ था
तभी वहाँ नारियल वाला आया
हमने खुद भी खाया और उसे भी खिलाया
वो बोला, आप ये क्या कर रही हैं !
क्यों मुझ पर अहसान कर रही हैं !
आप क्या सोचती हैं
मेरे पास पैसो की कमी है
देखिए, गड्डियाँ भरी पड़ी हैं
बस एक चीज की कमी थी
वो आपने पूरी कर दी
मेरी कोई बहन नहीं थी
धन्यवाद बहन जी
वो धन्यवाद करके जा रहा था
रेडियो पे ये गाना आ रहा था
दिल केअरमां आँसुओं में बह गए
हम वफा करके भी तनहा रह गए
----©किरण बाला
( चण्डीगढ़ )
हसते रहो, हसाते रहो ''साहित्य सरोज 21 दिवसीय प्रतियोगिता''।
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