दिल तो जवां है-निक्की

*बूढ़े हैं तो क्या हुआ दिल तो अभी जवान है*


"दादू" चलो आप भी! हम सब बाहर जा रहे हैं ! आज उधर ही खाना खाएंगे! बहुत मजा आएगा। बंटी ने अपने दादा से कहा जो कुछ ही दिन पहले रिटायर्ड हो गए तो बेटे बहू के साथ रहने आएं है।


बहुत जिंदादिल इंसान कोई एक बार मिले तो कभी न भूले। बंटी दादा-दादी में लिपटा ही रहता। आज भी वो चलने की ज़िद कर रहा साथ में।


"बंटी " हम सब कहाँ जाएंगे बेटा आप जा कर आओ। नहीं....दादी आप भी चलो। तब तक रोहन आ गया शर्मा जी का बेटा ....पापा हमसब बाहर जा रहे हैं, खाना उधर ही है तो आप सब खा लिजिएगा। माँ खाना टेबल पर ही है, बहू ने कहा और दोनों निकल गए। दादा दादी नहीं जा रहे पापा ? बंटी ने पूछा।नहीं वो कहाँ जाएंगे थक जाएंगे उन्हें आराम करने दो। तुम चलो।


बंटी तू जा बेटा ..जल्दी आना, फिर दादा अच्छी सी कहानियां सुनाएंगे दादी ने बंटी को समझाया और उसे भेजा। लेकिन शर्मा जी कुछ और ही सोच में डूबे थे। आंटी सब समझ गई थी पर वो कुछ न बोली, शर्माजी सोच में डूबे थे। बेटे ने एक बार भी नहीं पूछा उनसे चलने को एक समय था जब हम दोनों इसके बिना कहीं जाते न थे और आज का समय है ये हमें जाते समय पूछते भी नहीं। "लो कॉफी " पीयो और सब भूल जाओ। सुभद्रा तुम्हें याद है जब हम सब कहीं जाते तो तुम सिर्फ मेरे और रोहन के लिए कुछ लेती थी और मैं हमेशा तुम्हें ज़बरदस्ती कुछ ख़रीद कर दिया करता था। "हाँ याद है"। मैं हमेशा कहती थी रोहन को बड़ा होने दो फिर वो कमाने लगेगा तो मौज-मस्ती करूंगी अभी तुम मेरे बेटे को कराओ।


आंटी की आँखें भर आई। शर्माजी ने आँसू देख लिया। हम सब साथ हैं पर एक खालीपन है! अब आज़ाद हुआ हूं तो भी अकेलापन है सब अपनी जिंदगी में खुश है हमारी जिम्मेदारी खत्म ! तो क्यों न हम अपनी जिंदगी जिये शर्मा जी ने कहा।


सुभद्रा तुम और हम कभी भी अपने बारे में नहीं सोचा पर अब समय आ गया है सोचने का! और मैंने सोच लिया है हम कश्मीर जाएंगे घूमने! तुम्हारा हमेशा से सपना था! कश्मीर देखने का तब जिम्मेदारी इतनी थी की, कुछ तुम्हें दे ही नहीं पाया, अब मैं स्वतंत्र हूं और अब हम दोनों अपने लिए जिएंगे।


बच्चों के साथ भी रहेंगे पर अपनी आज़ादी खोकर नहीं। पर रोहन से तो पूछ लो सुभद्रा ने कहा। नहीं सुभद्रा हम जा रहे हैं ये बताना है.... मुझे पूछना नहीं हैं! और न तुम्हें कुछ पूछने की जरूरत है, जब तक मैं हूं।


उन्हें उनकी जिंदगी जीने की आज़ादी है, और हमें हमारी। अब बुढ़ापे में कश्मीर जाकर क्या करेंगे सब क्या सोचेंगे, सुभद्रा ने कहा। उन्होंने तुम्हारे बारे में सोचा तुमने पूरी जिंदगी जिसके बारे में सोचा, जब उसने ही नहीं सोचा तो तुम क्यों सोच रही हो।


हम अपनी जिम्मेदारी से न पहले हटे थे, न आज हटेंगे, बस अपनी जिंदगी भी भरपूर जिएंगे किसी पर बोझ बनकर नहीं रहेंगे,कल किसने देखा है! मैं न रहूं तो। बंटी को हम अपने बेटे से ज्यादा प्यार करते हैं और करेंगे भी उसे हमारी जरूरत है पर हमें भी अब मस्ती करने का हक है।


हम कश्मीर जा रहे हैं बस। बूढ़े हो गए और मस्ती करनी है बुढ़ापे में सठिया गए हो क्या सुभद्रा ने चिढ़ाया। सही कहते हैं लोग बुढ़ापे में सब सनक हो जाए तो जाती नहीं है तुम्हें भी कश्मीर जाने की सनक हो गई है। बूढ़े हो गए तो क्या-दिल तो अभी जवान है। दोनों खिलखिला पड़े।


निक्की शर्मा रश्मि
मुम्बई


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