ईश्‍वर की अनमोल रचना -विक्रम

अन्‍तराष्‍ट्रीय महिला दिवस पर विशेष

 

केवल एक दिन यह मान लेने से क्या नारी को सम्मान मिल जाता है? औरत त्याग की एक ऐसी मूरत हैं जिसे देवी का स्थान मिला हैं. किसी पुरुष में सहस्त्र हाथियों का बल होगा, पर एक औरत की ताकत और उसके त्याग के आगे तो शून्य ही हैं. भले ही समाज में इसे दुःख मिला हो, पर उस समाज की खुशहाली की इकलौती नींव एक नारि ही हैं. महिला दिवस, एक ऐसा दिन जिसमे दुनियाँ भर की महिलाओं को सम्मान दिया जाता हैं, उनका गुणगान किया जाता हैं. कई देशों में इस दिन अवकाश भी रखा जाता हैं . और कई तरह से इस दिन को मनाया जाता हैं लेकिन क्या महिलाओं की स्थिती दुनियाँ के किसी भी देश में इतनी सम्मानीय हैं ? क्या महिलायें अपने ही घर एवम देश में सुरक्षित हैं ? अधिकारों की बात क्या करे, जब सुरक्षा ही सबसे बड़ा विचारणीय मुद्दा हैं . ऐसे में अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस जैसे दिन समाज को दर्पण दिखाने के लिए महत्वपूर्ण हैं . माना कि एक दिन से महिला विकास संभव नहीं, लेकिन कहीं ना कहीं, यह एक दिन भी पूरी दुनियाँ को एक साथ इस ओर सोचने का मौका देता हैं, जो हर हाल में महत्वपूर्ण हैं . इसलिए इस एक दिन को छोटा समझ कर इसे भुलाने की गलती ना करे, बल्कि एकजुट होकर इस एक दिन को साकार बनाये, ताकि देश विदेश हर जगह महिला सशक्तिकरण की ओर कार्य किया जा सके.

 

ये औरत आपको  क्या कहुँ, आपकी  हर एक  बात निराली है आप देखो एक  ऐसा पौधा है जिस घर में आप  रहे उस घर में हरियाली ही हरियाली है आपकी  शान में सिर्फ इतना ही  कह सकते है की आपकी उचाईयो के सामने आसमान भी नहीं रह सकता है मेरा सिर्फ इतना सा एक पैगाम है मां  ऐ मां ये नारी  आपको मेरा सिर झुका कर सलाम है..ईश्वर का अनमोल रचना  माँ है

 

नारी आप  स्वतंत्र हो, जीवन धन यंत्र हो

काल के कपाल पर,लिखा सुख मंत्र हो मां।

 

सुरभित बनमाल हो,जीवन की तक हो मां

मधु से सिंचित-सी,कविता कमल हो मां ।

 

जीवन की छाया हो, मोहभरी माया हो मां

हर पल जो साथ रहे,प्रेमशक्ती साया हो मां। 

 

माता का मान हो,पिता का सम्मान हो मां

पति की इज्जत हो, रिश्तों की शान हो मां।

 

हर युग में पूजित हो, पांच दिवस दूषित हो 

जीवन को अंकुर दे,मां बनकर उर्जित हो मां।

 

घर की मर्यादा हो,प्रेम पूर्ण वादा हो नारी 

प्रेम के सान्निध्य में,खुशी का इरादा हो मां।

 

रंगभरी होली हो, फागुनई टोली हो नारी 

प्रेमरस पगी-सी,कोयल की बोली हो मां।

 

मन का अनुबंध हो, प्रेम का प्रबन्ध हो नारी

जीवन को परिभाषित,करता निबंध हो मां

 

 अनमोल हो मां मेरे जैसे शावक को जन्म दी

ईश्वर का अनमोल रत्न हो मां फिर जन्म लेगे।।

 

कवि विक्रम क्रांतिकारी (विक्रम चौरसिया) 

दिल्ली विश्वविद्यालय

05 अप्रैल 2020 को महिला उत्‍थान दिवस पर आयो‍जित
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