करती हूं मैं यही दुआ दिन और रात
ना छूटे साथ हमारा पिया का रहे हाथों में हाथ
की थी मैंने यही कल्पना
हो जाऊंगी मैं पूर्ण समर्पित
कष्ट उठाऊंगी सारे मैं एक दूजे के लिए
बस कर पाऊं मैं उसका प्यार और स्नेह अर्पित
करूंगी सोलह सिंगार मैं
स जू गी आज दुल्हन की तरह
रखूंगी पूरे मन से व्रत
साजन मिले हर जन्म में इसी तरह
करती हूं मैं यही दुआ दिन और रात
ना छूटे साथ हमारा पिया तारे हाथों में हाथ
सोने चांदी के गहने
सजाते हैं केवल तन को
लेकिन जब समर्पित होते हैं
दो हमसफ़र एक दूजे के लिए
तो एक अद्भुत खुशी होती है
दोनों के तन और मन को
संगीता शर्मा
मेरठ
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