वर्ष 2020 की होली की अंतिम रचना अखंड गहमरी
आप के मन में निश्चित कई दिनो से तहलका मचा है कि मैं अखबार में एक वाहन चालक की नियुक्ति का विज्ञापन देखकर वह क्यों बार- बार अपने मित्र के पापा के भाई के बेटे के ससुर की बेटी की बहन के पीछे पड़ा हुआ था? वाहन चालक की पोस्ट को पाने के लिए भटकनियाँगंज से लटकनीयाँगंज, लटकनीयाँगंज से खटकनीयाँगज दौड़ रहा था ? सभी असुरो को मना रहा था। मोदी-योगी जी से क्यों यह विनती कर रहा था कि पूरे भारत में उसका ड्राइविंग लाइसेंस छोड़ कर सभी का ड्राइविंग लाइसेंस निरस्त कर दें। तो इसका सीधा जबाब है कि क्या आपने कभी किसी से प्यार किया है ? नहीं ? तो तुरंत करीये। तब आपको पता चलेगा कि वर्तमान भविष्य में भूत बन जाता है तो दिल के समुन्द्र में कितना बड़ा तूफान आता है। आँखो से सुनामी बह कर गालो को खराब करती गले से नीचे कपड़ो को भीँगाती चली जाती है। रैमंड में बनने वाला रूमाल भी काम नहीं आता है। आप वह काम कर जायेगें जो अखंड गहमरी यानि मैं कर रहा हूँ। तब बातों की हकीकत पता चल जायेगी।
सटखनीयाँ चाचा के आशीर्वाद से जब मैनें एवरेस्ट फतह कर लिया और बन गया देश की विख्यात, कुख्यात, प्रख्यात, अस्त, व्यस्त, पस्त और लस्त देश के मंचों की बहुत बड़ी कवयित्री की गाड़ी का ड्राइवर । तब यह राज खोल रहा हूँ मैं अपनी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ के जिंन्दगी की गाड़ी का ड्राइवर नहीं बन सका इस लिए उसकी गाड़ी का ड्राइवर बनना चाह रहा था । क्यों कि ऐसे समय में जब लोग केवल दो फायदे के लिए परेशान रहते है मुझे तल्काल ब्रहम्मा, विष्णू, महेश की तरह तीन फायदे होते और हुए भी । सबसे पहला और बड़ा फायदा तो यह हुआ कि अब मैं अपनी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ के साथ दिन भर रहता हूँ। गाड़ी के बैक मिरर में मैं उसे देखता, वह मुझे देखती। उसकी पंसद का संगीत गाड़ी में बजा देता तो वह भी झूमती और मैं भी झूमता। जहाँ- जहाँ, जिस- जिस रेस्ट्रोरेंट में हमने लंच डिनर ब्रेकफास्ट किया था, वहाँ फिर जाने लगें। भुगतान पहले भी वह करती आज भी वही करती। बताईये हुआ न फायदा ? दूसरा फायदा यह हुआ कि इस होली के अवसर पर जब कवियों और कवयित्री को सीजन चल रहा है तो मैं उसके साथ । उसे सम्मान मिलता वह सब लेती तो मैं चट से इधर से हाथ बढ़ाता वह भी उधर से बढ़ाती, कहा जाता है स्पर्श से स्नेह बढ़ता है तो यह काम भी हो जाता है। मैं उसको मिले सम्मान को अपने हाथो में ऐसे उठाता जैसे हिमालय पर्वत इस दौरान लिये गये अखबारी फोटो में मैं भी रहता जिससे कई बार मेरी फोटो भी कुत्ते चाट चुके हैं। यही नहीं मैं उसका टेंड-पेंन्ट का सामान लिये कार्यक्रम शुरू होने के बाद ठीक सामने कुर्सी पर बैठ जाता और यकीन जानीये जब वह काव्यपाठ शुरू करने से पहले मुझे मंच पर बुलाती तो मेरा सीना 5894 इंच का हो जाता। मैं अपने आपको कार्यक्रम की मुख्य अतिथि से कम नहीं समझता। सीना तान कर मंच पर जाता । वह अपने हसीन से मुखड़े का डेंट-पेंट करती, मैं शीशा लिये खड़ा रहता उसे निहारता और फिर लौट आता दर्शक दीर्घा में। मुझे उस समय अपनी कुर्सी जाने का भय नहीं रहता। कुर्सी की लडाई तो आजकल भाजपा वाले करते हैं काव्य मंचो पर तो कुर्सीयाँ खाली ही रहती है। अब तो वह समय आने वाला है जब दर्शक पैसे और सम्मान देकर बुलाये जायेगें, कवि उनका सम्मान करेगें। वैसे कवि आज भी दर्शक का बहुत सम्मान करते हैं। आयोजक चाहे लाख पैसा दें दे, व्यवस्था दे दें, वह माईक तक नहीं आयेगें। जब संचालक महोदय उनकी वीरगाथा पढ़ने के बाद दर्शको की चमाचागिरी करेगें कि आप ताली बजाकर उनको मंच पर आने का आदेश दें वह तभी आयेगें। कार्यक्रम की समाप्ती पर मैं उसके साथ-साथ चलता तो भीड़ मेरे पीछे रहती , मैं उसके साथ साथ। वह थकी हुई कभी कभी कार में सोती तो मेरे बाहों में आ जाती । मुझे कितना सुख मिलता होगा। वैसे जलीये मत ये मेरी बात है। याद है न पत्नी से पिटने का मज़ा वाली बात। तो वाइफ होम से पिटा मैं तो सुख भी तो मेरा। वैसे मेरी गजगमिनियाँ कोई बहुत बड़ी कवयित्री नहीं है, उसका लेखन और गला भी वैसा नहीं मगर संचालक की कृपा है। वह विशलेषणो से परे विशलेषण है। और जब उसका विशलेषण शुरू होता है तो मेरा सीना 9590इंच का हो जाता है। दो चार बार दर्शको की ताली का आदेश मिलने के बाद ही वह मंच पर आती है। वह मंच पर क्या आती है पूरा मंच ही हिला जाती है। आने के साथ पाँच मिनट तो वह आयोजक और संचलाक और मेरे नाम पर तालीयों का शोर करा ही देती है। इस कला पर मैं तो लट्टू हूँ। वह काव्य पाठ शुरू करने के लिए आदेश के लिए भी ताली बजवाती है। 4अक्षर बोलने के बाद फिर वह ताली बजवाती है। खड़ी तो खड़ी, अंतिम पक्ति तो, नई कविता शुरू तो यहाँ तक की समाप्त करने व बैठने के लिए भी ताली बजवाती है। इधर बेचारे संचालक महोदय अपनी छवि बिगड़ते देख कर कुछ देर के लिए कवि सम्मेलन के मंच को कौव्वाली का मंच बना कर एक दूसरे पर पर बम का गोला फेंकते हैं। वो कहते है न कि सवाल-जबाब करते है। बेचारे दर्शक को फिर संचालक महोदय के लिए भी ताली बजाकर इस बात के लिए आदेशित करना पड़ता है कि वह मेरी गजगमिनियाँ के बात का जबाब दें। पूरे मंच से ताली के रूप में आदेश चाहते हैं। हमारे वीर रस के कवि रमेश तिवारी तो हमारी गजगमिनियाँ से भी आगे हैं। अपनी पत्नी के साथ हुए झगडे़ को ऐसे चीख-चीख कर ऐसे बतायेगें जैसे पाकिस्तान के साथ जंग लड़ रहे हो। वह बात बात में पाकिस्तान को लेकर वीरता की बातें करके दर्शको से अनुरोध करते है कि इतनी तेज ताली बजाये कि उनकी ताली की गूँज लाहौर और इस्लामाबाद में सुनाई दें। उनकी वीरता के शब्दो को सुनकर मंच और माइक तो नहीं हिलता मगर उनकी चीख सुनकर पड़ोस में सोये बच्चें जग जाते है और वह किसी के सांस्कृतिक कार्यक्रम में व्यवधान पैदा कर देते हैं। यह बात मैनें एक कवि सम्मेलन में ही जानी । वह कितने मजबूत है यह आप सब जानते ही है मगर वह मंच पर जरूर कहते हैं कि आपकी तालीयाँ कमजोर हैं। एक दिन वह तालियों के लिए हास्य कवि गजोधरन से लड़ बैठे। वाक्या बस इतना था कि गजोधरन खडे़ हुए लगातार दस बीस लतीफे पढ़े और कुछ आयोजक पर, कुछ संचालक पर कुछ खुद पर तो कुछ उठ कर जाने वालो पर कमेंट शुरू कर तालीयों पर तालीयॉं पिटवाये जा रहे हैं। अब गजोधर भाई की दुकान जब लतीफो पर चल रही है कविता पाठ वो क्या करेगें। इस मेरी ताली तो मेरी ताली पर भीड़ गये दोनो। वो तो भला हो गजगमिनियाँ का जो बीच में आकर मामले को संभाल ली, नहीं तो व्यंग्य के कवि पलटनीया मिश्रा के आने से पहले ही तंम्बू उखड़ जाता।
बेचारे पलटनीया कवि जी आये पहले तो उन्होनें बड़े ही प्यार से कई विधाओं की टाँगें तोड़ना प्रारंभ किया और बार बार वह इस बात को लेकर ताली बजवाने लगें कि उनकी आवाज को सदन में मोदी योगी राहुल माया तक पहुँचे। पहली लाइन के बाद ताली बजवाने के बाद तुरंत वह तपाक से बोल देते हैं कि तालीयाँ तो अब इस बात पर चाहिए कि हम गीदड़ हैं। मतलब पंक्ति के पहले मध्य में बाद में बस तालीयों का शोर होना चाहिए।
एक दिन कवि सम्मेलन से लौटते समय फटफटीयाँ चौराहे गाड़ी हमारे प्यार की तरह ब्रेकडाउन हो गई। मैं आव न देखा ताव बनाने लगा, गाड़ी। मेरी हालत देख वह रो पड़ी। तुरन्त मैकेनिक को फोन किया। गाड़ी बनती तब तक पर दोनो आइसक्रीम खाने चल दिये। वही सामने एक और कवि सम्मेलन हो रहा था। आइसक्रीम खाते हुए मैनें कवि द्वारा तालीयाें का डिमांड का कारण पूछ ही लिया। वह बड़े ही प्रेम से बोली मेरे साँवरे बलम तुम नहीं समझोंगें इस प्रथा को। जब तुम कवि सम्मेलनो में जब माइक बजाया करते थे तो उस समय लेखन हुआ करता था। दर्शक हुए करते थे। गरिमा हुआ करती थी। अब कुछ नहीं बचा, अब तो आरकेस्ट्रा और कव्वाली के मंचों के बराबर यह कवि सम्मेलन का मंच हो गया है। तुम मुझे देखें मेैं कब कि कवयित्री थी, लेखन में हजारो दोष हैं मगर आज मैं मारर्केट में बिक रही हूँ, चल रही हूँ, नाम पैसा शोहरत सब हैं। प्रकाशक आयोजक पीछे हैं, क्योंकि मुझे मक्खन लगाना आता है, मैं राजनीति समझती हूँ। मैनें घीरे से कहा देखो माई डीयर पटकनीया बलम कई मंचो पर संचालक का काम देख रहा हूँ वह तो बस दूसरो के शेर पढ़ कर, तारीफे करके, ताली बजवाकर , और कवियों पर कमेंट पास कर के चार पाँच कवियों के बराबर समय ले मंच पर खडे़ अपने प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं। इस लिए मुझे संचालक ही बनवा दों। खुदा कसम मेरी इस बात पर उसकी जो हंसी आई डोनाल्ड्र ट्रम्प का जेट विमान हिल गया। उसने मेरे चाँद से मुखडे़ को हाथो में लेते हुए कहा मेरे लतखोर बलम यह काम इतना आसान नहीं, इसके लिए कलेजा चाहिए, तालमेल चाहिए, मक्खन बाजी चाहिए, दूसरो की रचना पढ़ना पडेगा तब रात भर चीखना पडेगा और इस बात का समझौता करना पडेगा कि आज हम जितना पुलिंदा आपका बाँधे उतना मेरा बॉंधो। फिर तुम आयोजक कहाँ से लाओगे। अब मंच संचालन संचालन नहीं मंचो की राजनीति का सिरमौर हो गया है। इस लिए मेरे साँवरे बलम इस का चक्कर छोड़ो चलो गाड़ी चलाओं आज मैं तुम्हारे साथ बैठती हूँ यह लो और आईसक्रीम खाओं और भूल जाओं कवि सम्मेलन और तालीयों को क्योंकि अब कवि सम्मेलन में न कविता है न भाव है न संस्कृति है न साहित्य है। बचा है केवल तो वह है लेन-देन। कविता और मंच व्यापार हो गये इस लिए कवि जी श्रोता की जगह अब शबनम मौसी के रिश्तेंदारो के तलबगार हो गये। जो हर बात में कहें, हर बात में बोले...देअअअअताली, बअअअजा ताली..........। इतना सुनने के बाद मैं खुश हो गया कि चलो आज मैं इस भीड़ का हिस्सा नहीं, मृतुंजय चचा के स्वांत सुखाय का हिस्सा हूँ। अपनी प्रेमिका के प्रेम के पीछे भागता हूंँ । लोगो के प्यार का दिवाना हूँ।
अरे अरे जाइये मत मेरी ड्राइवरी का तीसरा फायदा तो आपने सुना ही नहीं। सही पकड़े बिल्कुल सही। अब मैं दिन भर अपनी पूर्व प्रेमिका के साथ रहूँ लेकिन मेरी बाइफ होम अब मुझे मारती नहीं। बस कपड़े बर्तन धुलवा कर, झाडू पोछा करा लेती है, खाना खुद बना देती है। तो अब बताईये इस ड्राइवरी के नौकरी के कितने फायदें है। तो जाईये प्रेमिका बनाईये, उसे पूर्व करीये, ड्राइवर की नौकरी लीजिए और मेरी तरह मजें कीजिए। हम अब चलते है फिर अपनी पूर्व प्रेमिका के बजबजहियॉं कवि सम्मेलन में। नमस्कार जय हिंद जय भारत।।
अखंड गहमरी, प्रकाशक साहित्य सरोज।।
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