मेरा एक सवाल है हम लोगों ने देखा लॉक डाउन के दरमियान दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डे पर लोगों की भीड़ जमी यह भीड़ प्रवासी मजदूरों की थी जो कि कहीं ना कहीं लॉक डाउन पर प्रश्न चिन्ह लगता हुआ प्रतीत हो रहा है जब सरकार ने लॉक डाउन कर दिया था तो आखिर कैसे पार कर गए एक लाख से ज्यादा लोग आनंद विहार बॉर्डर को यह सिलसिला शुक्रवार से उस समय शुरू हुआ जब हजारों की संख्या में लोग आनंद विहार बॉर्डर पार कर रहे थे तो वहां मौजूद पुलिस अधिकारी क्यों सोए हुए थे क्यों नहीं दिखाई दे रहा था कि आखिर इतने लोग एक साथ कहां जा रहे हैं उन्हें वहां किसी ने रोका क्यों नहीं अगर शुक्रवार को ही बॉर्डर पर तैनात पुलिस ने लोगों को रोक दिया होता तो आज स्थिति खराब नहीं होती लोगों का कहना था कि दिल्ली सरकार की ओर से कोई खाने-पीने रहने की व्यवस्था समय पर नहीं की गई थी इसलिए अपने घरों की ओर प्रस्थान करने का मन बना लिया |
"""""ये गंदगी तो महल वालों ने फैलाई है साहब
वरना गरीब तो सड़कों से थैलीयाँ तक उठा लेते हैं"""""""
जरा ध्यान से मेरी बातों को सोचो दोस्तों जिस भूख और गरीबी से भागकर गांव से महानगरों में लोग आए थे आज इसी भूख से बचने के लिए अपने गांव की ओर हजारों किलोमीटर पैदल ही चल दिए आखिर मरता तो गरीब ही है ना देखा जाए तो देश में अलग प्रकार का यह पलायन है जिसको हम बोल सकते हैं करोना पलायन यह देखा जाए तो विकासशील देशों में ऊपरी हैं खासकर भारत में जहां विकास में प्रादेशिक और अंतर प्रादेशिक विषमता अधिक हैं भारत में ग्राम नगर प्रवास का मुख्य कारण ग्रामीण क्षेत्रों का पिछड़ा होना है अभी हाल ही में मेरा दौरा हुआ था कुछ गांव में उसी में से एक गांव ऐसा है जहां मेरा बचपना बिता जब मैं उस गांव में गया आज भी हालात वैसा ही है जैसा आज से 15 साल पहले था आज भी पहले जैसा ही गांव में रोजगार का नहीं होना जीवन की मूलभूत सुविधाओं का अभाव रोटी और जीवन को बचाने का संघर्ष जीवित रहने की लड़ाई बच्चों की शिक्षा पानी और पेट की लड़ाई ऐसे कई विचलित करने वाले कारक हैं जो गरीब लोगो को महानगरों की ओर मजबूरी बस पलायन को बाध्य करती है अक्सर गांव से लोगों का फोन आता रहता है कि हमें कोई शहर में काम मिल जाएगा तो सुनकर बहुत दर्द होता है जब देखता हूं शहरों में स्लम की स्थिति और झुग्गियों में संघर्ष करते हुए गांव के लोगों को तो यहां की जिंदगी कितनी नरकिय भेदभाव पूर्ण है यह हम सभी जानते हैं की महानगरों में भी इनके जीवन का संघर्ष बना रहता है लेकिन यहां यह जिंदा रह लेते हैं अगर विभिन्न राज्यों में विकास हुआ होता तो यह स्थिति नहीं उत्पन्न होती है आज आजादी के 72 साल हो जाने के बाद भी वही किसान मजदूर और गांव का हालात है जो आज से 72 साल पहले थी आखिर इसका जिम्मेदार कौन है खैर यह लंबी बहस है गरीबी और गरीबों के नाम पर सरकार बनाने वाले राजनीतिक दलों ने आज तक गरीबी दूर क्यों नहीं की यह मेरा हर एक प्रतिनिधि से सवाल है खुद के मन से जरूर टटोलने का कोशिश करना अक्सर देखने में आता है की राजनीतिक उठापटक के समय लोगों को विधायक खरीदने के लिए करोड़ों करोड़ों रुपया हो जाते हैं लेकिन गांव के विकास के लिए गांव में ही रोजगार मुहैया कराने के लिए गांव में ही उद्योग लगाने के लिए पैसे नहीं होते जो कि हर एक भारतीय का यह सवाल है आज सवाल दूसरा है आज यही मजदूर गरीब लोग अपनी जान बचाने के लिए भूख से मरने से बचने के लिए सैकड़ों किलोमीटर पैदल यूं ही गांव और कस्बों की ओर अपने छोटे-छोटे बच्चों और परिवार के साथ लौट रहे हैं जहां से कभी भूखे पेट भाग कर आए थे सवाल कई है अब सब सोचना जरूर मरता तो गरीब प्रवासी मजदूर और किसान ही है ना जोकि जब महानगरों में यह काम करने के लिए आते हैं इनके पास स्थानीय उस महानगर का ना ही राशन कार्ड होता है ना ही वोटर कार्ड होता है ना ही कोई स्थानीय पहचान पत्र होता है जो इनको आपातकालीन समय में कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिल सके इनके बच्चे झुग्गी झोपड़ी स्लम में ही अपना बचपना गुजार देते हैं और कई प्रकार के नशा रोग और यौन शोषण जैसी बुराइयों का सामना इनको करना पड़ता है वहीं शहरों में लोग अपने आप से मतलब रखते हैं किसके घर में शहनाई बज रही किसके घर में मैयते जा रही हैं किसी से कोई मतलब नहीं इन प्रवासी मजदूरों के बच्चों को लोग हीन भावना से देखते हैं जो कि बहुत हद तक मैंने अपने करीब से देखा और ऐसा अपने आस-पड़ोस और खुद के साथ होते हुए भी देखा वही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बोले है कि बाहर से आ रहे किसी को घुसने नहीं देंगे उनको बॉर्डर पर ही रोक लिया जाएगा बहुत ही सराहनीय पहल है लेकिन ऐसा ही कदम केंद्र सरकार को बहुत पहले उठाना चाहिए था जब चीन के वुहान शहर में यह हालात था और उसी वक्त क्यों नहीं सभी उड़ानें रद्द कर दी गई आप सब भी सोचना जरूर मित्रों|
अगर हम ध्यान से सोचे तो यह सभी के कल्याण के लिए ही है और सुशासन का यह कर्तव्य है की जनता की रक्षा के लिए व्यापक रूप से कल्याणकारी पहल करें जैसा कि हम सब जानते हैं कि बीते सप्ताह एक दिन जनता कर्फ्यू के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह से 21 दिन के देशव्यापी लॉक डाउन का ऐलान किया वह अनिवार्य हो गया था इस लॉक डाउन की आवश्यकता तभी महसूस होने लगी थी जब जनता कर्फ्यू जारी था|
वैसे तो इस जनता कर्फ्यू के दौरान देश की जनता ने अभूतपूर्व संयम और एकजुटता का परिचय दिया लेकिन कुछ जगहों पर लोगों ने लापरवाही भी दिखाई इसी कारण देश के करीब 80 जिलों में लॉक डाउन करना पड़ा इस दौरान भी कई लोग सोशल डिस्टेंस यानी एक दूसरे से शारीरिक दूरी बर्तनों के प्रति लापरवाह दिखे जिसका मैं कड़े शब्दों में आलोचना करता हूं वही दूसरी तरफ जिस तरीके से कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते राष्ट्रव्यापी लॉक डाउन के बाद अचानक उपजे हालात के तहत दिल्ली एनसीआर से प्रवासी श्रमिकों ने अपने सुदूर गांव घरों का रुक कर लिया बस से चलने की सूचना पर शनिवार को हजारों की संख्या में लोग कौशांबी आनंद विहार बस अड्डे पर जुट गए हैं और गंतव्य को रवाना हुए इस दौरान भीड़ को संभालने के लिए पुलिस को काफी मशक्कत भी करनी पड़ी वहीं दूसरी तरफ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि बाहर से आ रहे किसी को नहीं घुसने देंगे बिहार में मैं स्वागत करता हूं दिल से इनकी विचार को लेकिन क्या यह बहुत पहले नहीं होना चाहिए एक तरफ ऐसी तस्वीरें देखने को मिल रही है जो दूसरे देशों में फंसे हुए लोगों को बहुत प्यार से लाया जा रहा है वही अपने देश के प्रवासी मजदूर को पैदल ही घर की तरफ निकलने के लिए विवश होना पड़ रहा है जो तस्वीरें आ रही है और जो हम खुद दिल्ली में रहते हुए देख रहे हैं कि लोग अपने परिवारों के साथ घर की ओर पैदल ही निकल रहे हैं छोटे-छोटे बच्चों को लेकर वही प्रवासी मजदूरों तक सरकार की ओर से उनकी सहायता की कदमों की जानकारी पहुंचने और उनके बीच में फैल रही अफवाहों को दूर करने के लिए केंद्र ने राज्य सरकारों को व्यापक प्रचार अभियान चलाने का निर्देश दिया है वही फंड की कमी के कारण कुछ राज्यों की ओर से प्रवासी मजदूरों पर ध्यान नहीं देने की आशंका को देखते हुए केंद्र सरकार ने राज्यों को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना का इस्तेमाल करने को कहा है अगर ऐसे ही पलायन होगा तो फिर फेल हो जाएगा कहीं न कहीं लॉक डाउन कोरोना के खिलाफ विज्ञान की जीत है मगर उसे अपने हथियार तैयार करने के लिए समय देना होगा देखा जाए तो कोरोना वायरस के संक्रमण के इस दौर में एक शताब्दी पुराना स्पेनिश फ्लू चर्चा में है इसकी शुरुआत 1918 में प्रथम विश्व युद्ध में खुदाई करने वाले चीनी मजदूरों के साथ हुई जो इस वायरस को चीन से यूरोप लेकर आए इस वायरस ने युद्ध के दौरान दोनों को मुंह में सैनिकों की जान ली 1919 में युद्ध खत्म होने के पश्चात यह वायरस अपने-अपने देशों को वापस लौटते सैनिकों के साथ सभी देशों में फैल गया इस दूसरी लहर में स्पेनिश फ्लू के वायरस ने कई शहरों को तहस-नहस किया और 2 साल के भीतर करोड़ों लोगों की जान ले ली मरने वालों में भारत की तमाम लोग थे कहा जाता है कि महात्मा गांधी और अमेरिकी राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन को भी यह बीमारी हुई सच्चाई जो भी हो उस समय के वैज्ञानिक मजबूर थे उन्हें पता था कि स्पेनिश फलू किसी बहुत ही छोटे जीव से होता चुकी तब तक इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का आविष्कार नहीं हुआ था इसलिए स्पेनिश फ्लु के वायरस को देखने का कोई ठोस जरिया नहीं था तत्कालीन वैज्ञानिकों को आर एन ए का ज्ञान नहीं था जिससे वायरस बनते हैं मगर तब भी हार नहीं मानी गई और उस वायरस के खिलाफ जो बन पड़ा किया गया पुरानी वैक्सीन का मिश्रण इस्तेमाल किया गया हर प्रकार की दवाइयों और जड़ी बूटियों को आजमाया गया सब कुछ प्रतिकूल होने के बावजूद 2 साल के भीतर मानवता उस अदृश्य दुश्मन को हराने में सफल हो गई मानव एक बहुत ही जीवट प्रजाति है हर तरह के संघर्ष में उसका सबसे बड़ा हथियार बनता है उसका दिमाग मानव ने विकास पथ मे हिम युग को पार किया सभी प्रजातियों से ऊपर अपना स्थान बनाया साहस संयम के साथ एकता भी मानव की शक्ति है|
दोस्तों इस समय पूरी दुनिया कोरोना संकट से जूझ रही है इसमें सबसे ज्यादा गरीबों के लिए जीवन को दुरूह बना दिया है प्रवासी मजदूरों के लिए जो रोज कुआं खोदते हैं रोज पानी पीते हैं ऐसे में जो लोग संपन्न हैं उन्हें खुले हाथों से दान करने के लिए आगे आना चाहिए दान की महिमा प्रत्येक धर्म और उसके ग्रंथों में लिखा गया है वैसे भी लोग मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा और गिरजाघर में लाखों करोड़ों रुपए दान करते आए हैं ऐसे में उन लोगों को महामारी से लड़ने के लिए जरूरतमंदों की तरफ हाथ बढ़ाना चाहिए जैसा कि आप सब जानते हैं भारत में बहुत से ऐसे मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा है जहां करोड़ों अरबों रुपए हैं सोने चांदी पड़े हुए हैं यह सब मुझे लगता है कि इस महामारी में गरीबों वंचितों के लिए काम आ सकता है मैं खुद जितना कर सकता हूं करने का प्रयास कर रहा हूं यहां दिल्ली में रहते हुए भी कुछ फंसे हुए छात्रों और मित्रों को अपने साथ रखा हूं आप सब भी इस मेरे मुहिम में साथ दें दान और परोपकार कि सिख हम कहीं ना कहीं अपने प्रकृति से ले सकते हैं जैसे कि सूर्य चंद्रमा वायु अग्नि जल आकाश पृथ्वी पेड़ पौधे आदि सभी मानव कल्याण में लगे रहते हैं निस्वार्थ भाव से ईश्वर ने प्रकृति की रचना इस तरह से की है कि आज तक परोपकार उसके मूल में ही काम कर रहा है दान और परोपकार प्रकृति के कण-कण में समाया हुआ है जिस तरफ बिज परोपकार के लिए फल देते हैं नदिया परोपकार के लिए शीतल जल देती है उसी तरह मनुष्य को भी दान करना चाहिए दोस्तों एक बात मैं कहना चाहूंगा आज तक मैंने कभी धन के पीछे नहीं भागा यह बात मुझे मेरे दादाजी बहुत पहले बताए थे धन का इस्तेमाल 3 तरीके से होता है जिसमें दान को सर्वोत्तम माना गया है पहला दान धन का दान या त्याग महानता का निशानी होती है दूसरा भोग धन का उपयोग रोटी कपड़ा मकान और अन्य सुविधाओं के लिए करना भी उत्तम माना जाता है तीसरा नाश यदि आप धन दान नहीं देते है और उसे अपने ऊपर खर्च भी नहीं करते तो उस धन का आप नाश कर रहे हैं इसलिए दान खर्च और बचत में एक संतुलन जरूर होना चाहिए यह मेरे दादाजी बचपन से ही कहानियों के माध्यम से बताया करते थे दोस्तों बाइबिल में तीन सद्गुण माने गए हैं आशा विश्वास और दान इसमें दान सबसे बढ़कर है कुरान में कहा गया कि प्रार्थना ईश्वर की तरफ आधे रास्ते तक ले जाती है और उपवास हमको उनके महल के दरवाजे तक पहुंचा देता है और दान से हम अंदर प्रवेश करते हैं अर्थ वेद के 1 श्लोक में कहा गया है कि जो कि कुछ दिन पहले मैंने पढ़ा था मनुष्य को सैकड़ों हाथों से कम आना चाहिए और हजारों हाथों वाला होकर सम दृष्टि से दान देना चाहिए इस लेख के माध्यम से मैं यही अनुरोध करता हूं कि जो जितना कर सके वंचित लोगों के लिए प्रवासी मजदूरों गरीब किसानों के लिए उतना हाथ आगे बढ़ा कर प्रयास करें अब आगे आये करने के लिए उनकी मदद यह परीक्षा की कठिन घड़ी है इसमें सब को हाथ बढ़ा कर एक दूसरे का सहयोग करने का यही सबसे उत्तम समय है लोक डाउन के दौरान संयम और अनुशासन का परिचय देना और खुद को मानसिक रूप से इसके लिए मजबूत भी करना हम सबका नैतिक जिम्मेवारी है इससे हम इस वैश्विक महामारी से बच सकते हैं आप सब जैसा कि देख रहे हैं दोस्तों की अपने भारत में कोरोना से लड़ने के लिए पूरे राज्य एकजुट होने लगे हैं हमारी स्थिति ऐसी है कि हम समंदर के किनारे खड़े हैं और सामने से सुनामी आ रही है मुश्किल से 3 सप्ताह का समय है और कोई विकल्प भी नहीं है या तो खड़े होकर सुनामी की प्रतीक्षा करें या फिर जिस तरीके से कोबिड 19 की मरीजों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है इसको देखकर ऐसा कोई संकेत नहीं है कि भारत में कोरोना का प्रकोप कम होगा चीन इटली और स्पेन की तरह यहां भी 2060 स्थिति लोग संक्रमित हो सकते हैं यह रिपोर्ट है सेंटर फॉर डिजीज डायनॉमिक्स के निदेशक डॉक्टर रामानंद लक्ष्मी नारायण के करोना को लेकर दिए गए इस बयान को डराने वाला कहिए या फिर इसे आईना समझिए इसमें देश के साथ-साथ मध्य प्रदेश की जिस तरीके से शुक्रवार को बिहार यूपी के प्रवासी मजदूर हजारों की संख्या में पैदल ही चल दिए और जिस तरीके से भीड़ देखने को मिला दिल्ली के आनंद विहार और बस स्टैंड के पास यह बहुत ही डरावना तस्वीर है जो लोग बिहार में अगर में प्रवेश कर चुके होंगे सोच कर देखिए छोटे-छोटे गांवों और छोटे छोटे जिलों की हालात क्या होगा दुनिया में आंकड़ा 6 लाख के पार वही इटली स्पेन में हाहाकार मची हुई है विश्व के सबसे मजबूत लोकतांत्रिक देश और विकसित देश अमेरिका में चिकित्सा उपकरणों की भारी कमी जिससे चिंता व्यापक रूप से बढ़ गई है आलोचना बढ़ने के बाद ट्रंप ने जनरल मोटर्स को वेंटिलेटर बनाने के लिए किया विवश अमेरिका में संक्रमित लोगों का आंकड़ा 1लाख के पार हो चुका है 17 सौ से ज्यादा लोगों की जान चली गई है सर्वे के अनुसार अमेरिका में 192 शहरो ने यूएस कांफ्रेंस ऑफ मेयर्स को बताया कि पुलिस अधिकारियों दमकल कर्मियों और आपात कर्मचारियों के लिए पर्याप्त मास की आपूर्ति नहीं हो रही है इन शहरों में टेस्ट किट्स और वेंटीलेटर की कमी भी देखी जा रही है जो कि एक विकसित देश का यह हालात है तो हमें बहुत ही रणनीतिक रूप से अपने आप को इस लड़ाई में आगे लाना होगा इस लड़ाई में 130 करोड़ भारतीय एक योद्धा के रूप में खड़ा है इस वैश्विक महामारी से लड़ने के लिए मुझे याद आ रहा है कहीं मैं पढ़ा था महामारी के बीच महात्मा गांधी की सीख उसको मैं यहां आप लोग के बीच में जिक्र करना चाहूंगा जैसा कि मैं पढ़ा था महात्मा गांधी जब दुनिया को सत्य अहिंसा और प्रेम का सबक सिखा रहे थे तो यह कहीं न कहीं अपने दौर से आगे की चुनौतियों को भी बखूबी समझ रहे थे उनके विचार और कार्यक्रमों में उन तमाम चिंताओं और समस्याओं का वैकल्पिक समाधान है जिस पर आज दुनिया के तमाम देश अलग-अलग स्वर में बात कर रहे हैं इन समस्याओं में सबसे हम दो मुद्दे हैं पर्यावरण और विकास के बीच का संतुलन और अर्थव्यवस्था से जुड़े अहिंसक तक आज जो कि अभी हाल ही में एक रचना मैंने लिखा था कि अब तो तालमेल बना लो प्राकृत से जो कि कई सारे पत्र पत्रिकाओं और अखबारों में इसको जगह दिया गया था यह बातें इसलिए मैं यहाँ कहना चाह रहा हूं कि आने वाली पीढ़ी को हमें जागरूक करना है कि प्राकृत के साथ मिलकर ही हम समावेशी तरीके से विकास कर सकते हैं यह मुद्दे और प्रकाश गांधी ने उस गांधी ने हमारे सामने रखे हैं जिन्होंने अपने समय में न सिर्फ जंग की झुलस के बीच मानवता की कराह सुनी थी बल्कि अकाल और स्पेनिश बुखार जैसी स्थितियों में देश की बड़ी आबादी को मौत की नींद सोते देखा था कोरोना संकट के बाद दुनिया जैसी और जिस रूप में भी बचेगी उसके लिए अर्थव्यवस्था और विकास की आपाधापी के साथ पर्यावरण के साथ मानवीय रिश्ते को नए सिरे से समझने की बड़ी चुनौती होगी गौरतलब है कि औद्योगिक क्रांति से लेकर वैश्वीकरण तक दुनिया अगर कही एक सीध में बढ़ती दिखाई देती है मशीनीकरण और शहरीकरण की | कोरोना संकट के बीच आज उन शहरों की राशन पानी की पूरी व्यवस्था सबसे ज्यादा चरमरा रही है जिन्होंने अनजाने ही परावल लंबन की मेहता जी को अपने ड्राइंग रूप में और रसोई तक आमंत्रित कर लिया 1914 में अपने भारत आगमन पर गांधी ने अपने आपको तत्काल गांव की सामाजिक व आर्थिक स्थितियों का प्रत्यक्ष परिचय पानी में लगा दिया यंग इंडिया में 20 दिसंबर 1928 को वे लिखते हैं ईश्वर ना करें कि भारत भी कभी पश्चिमी देशों के ढंग का औद्योगिक देश बने एक अकेले इतने छोटे से दीप इंग्लैंड का आर्थिक साम्राज्यवाद ही आज संसार को गुलाम बनाए हुए हैं 130 करोड़ आबादी वाला हमारा राष्ट्र भी अगर इसी प्रकार के आर्थिक शोषण में जुट गया तो वह सारे संसार पर एक टेदी दल की भांति छा कर उसे तबाह कर देगा गांधी अपनी इस पूरी समझ में गांव और गरीब के हाथ में इस लिहाज से भी खड़े दिखाई देते हैं कि वह हमेशा गांव की रचनात्मक ताकत को रेखांकित करते हैं और इसे ही भविष्य के भारत की ताकत बनाना चाहते हैं 21 जून 1946 को हरिजन में छपे एक आलेख में ग्रामीण रक्त कि वह सीमेंट है जिससे शहरों की इमारतें बनी है औद्योगिक क्रांति ने उत्पादन के जिस अंबार और उसके असीमित अनुभव के लिए हमें प्रेरित किया है उसकी पूरी बुनियाद मजदूरों का शोषण पर टिकी हुआ था जो आज यही प्रवासी मजदूरों की कोई भी हाल जानने को तैयार नहीं है दिलचस्प बात यह है कि ज्यादा उत्पादन और असीमित उपभोग को विकास का पैमाना माना गया वही प्राकृतिक संपदा के निर्मम दोहन को लेकर सब ने एक तरफ से आंखें मुन्दनी शुरू कर दी कार्ल मार्क्स ने उत्पादन उपभोग की इस होड़ में मजदूरों की शोषण को देखा लेकिन मनुष्य प्राकृतिक संसाधनों के दोहन मशीनीकरण की आंधी से उजडते यूरोप को वे नहीं देख सके इसे अगर किसी ने देखा तो यह गांधी थे गांधी ने हिंद स्वराज में साफ शब्दों में कहा है मशीनें यूरोप को उजाड़ने लगी और वहां की हवा अब हिंदुस्तान में चल रही है यंत्र आज की सभ्यता की मुख्य निशानी है और वह महापाप है मशीन कि यह हवा अगर ज्यादा चली तो हिंदुस्तान की बुरी दशा होगी आज के हालात को देखते हुए हमें सोचने की जरूरत है और प्राकृतिक से तालमेल बनाने की जरूरत है कहीं ना कहीं हम कोरोना जैसे महामारी से निजात तो पा लेंगे लेकिन बहुत जल्दी ही पूरे विश्व में जल संकट का उत्पन्न होना हमें दिख रहा है तो कहीं ना कहीं हमें अभी से जल संरक्षण के तरफ कदम बढ़ाने की जरूरत है जिस तरीके से कारपोरेट जगत ने मदद को खोला है अपना खजाना यह बहुत ही सराहनीय है कोरोना वायरस की समस्या से जूझ रहे देश वासियों की मदद के लिए कॉर्पोरेट जगत ने अपने खजाने के मुंह खोल दिया है दर्जनों कंपनियों ने प्रधानमंत्री राहत कोष पीएम केयर के जरिए देश वासियों की मदद का ऐलान किया वही आम लोगों ने भी अपने अपने तरिके से मदद के लिए लोग आगे आ रहे है जो कि सराहनिय पहल हौ||
"""""मरहम लगा सको तो किसी गरीब किसान मजदूरों के ज़ख्मो पर लगा देना दोस्तों आप सब जानते हैं कि
हकीम बहुत हैं बाज़ार में अमीरों के इलाज़ के खातिर""""
जैसा कि मैंने कई अपने लेख और मीडिया इंटरव्यू में बोल चुका हूं कि मैं खुद चौथी क्लास से वंचित बच्चों के लिए काम करते आया हूं और हर वंचित वर्ग के लिए आवाज उठाते रहा हूं आज भी अपने आईएएस की तैयारी के साथ साथ वंचित लोगों के लिए आवाज उठाता रहता हूं और जितना हो सकता है मेरे से करने का प्रयास करता रहता. हूं इस वैश्विक महामारी के वक्त भी मैंने एक छोटा सा कदम बढ़ाया है आप सब भी मेरा साथ दे दोस्तों ||
कवि विक्रम क्रांतिकारी (विक्रम चौरसिया)
दिल्ली
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