मेरे आने से पहले वो
आँगन में आ जाती थी।
फुदक-फदक कर
सबको अपना
सुंदर रूप दिखाती थी।
देख कर उसको तन मन डोले
भागूँ जब मैं उसको छूने
अपने नन्हें हाथो से।
चपत लगा के पापा कहते
बेटा ना तुम उसको छेड़ो
आँगन में संग उसके खेलो।
जवां हुई जब बीता बचपन,
आँगन के ना होते दर्शन,
नजर नहीं वो भी आती
खोज में आँखे पथरा जाती।
पर्यावरण का हुई शिकार
तन मन खोजे पर बेकार ।।
कहती *सरिता* हो लाचार
अब न दिखते ना ही फुदके।
सबसे सुंदर सबसे न्यारी।
वो मेरी गौरैया प्यारी।।
*सरिता सिंह, भागलपुर*
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