ग़ज़ल़- सुनीता की

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष


बदली है रितु समझो इशारा जरा तड़पाया ना करो।
वक्त कम ही रहा मोहब्बत के लिए सदा जाया ना करो।।


रूठे हो फिर भी क्यों मुड़ मुड़, देखा करते हो।
प्यार बेइंतहा है दिल में मेरे लिए, छुपाया ना करो।।


मांगी है हमेशा तेरे लिए खुशियां, इस जहान की।
फितूर की बातों में पल पल मुझे, रुलाया ना करो।।


कहता है जमाना में ,माहिर हूं तैराकी में।
गहरी झील सी आंखों में अपनी, डुबाया ना करो।।


इस जहां के घने शोर में सदा ,आवाज तुम्हें ही दी।।
यों न बना करो बेरहम एक पल भी, भुलाया ना करो।।



छुप-छुपकर पढ़ती हूं रोज तेरी, आंखें हमसफर।
यहाँ भी अक्स मेरी है सनम दबाया,  ना करो।।


अंधियारी जिंदगी में रोशनी तुमसे मिली 'सुनीता'।
रखा चिराग दिल में मेरे नाम का, बुझाया ना करो।।


सुनीता बौद्ध


टूंडला, फिरोजाबाद, (उत्तर प्रदेश)


05 अप्रैल 2020 को महिला उत्‍थान दिवस पर आयो‍जित
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