सुन री सखी सहेली ,
हुई एक अजीब कहानी।
कल एक लड़के को ,
देखने की आयी बारी।
मामा ने था रिश्ता भिजवाया,
बोला सरकारी टीचर हूँ लाया।
बोले बड़ा अच्छा परिवार है,
लालच का ना नामोनिशान है।
घर आने को जब खबर हुई,
मुझको लाख नसीहते मिली।
आँखे नीचे ही रक्खे रहना,
मुँह से कुछ भी ना कहना।
जब भी पूछे कोई सवाल,
धीरे से बस देना जवाब ।
हौले से बस सर को हिलाना ,
हर बात पर हा में हा मिलाना।
आखिर आ गयी वो घड़ी ,
सामने मै थी उसके खड़ी।
सारी नसीहते याद थी ,
इसलिए बस चुपचाप थी।
चुपके से देखा लड़के को ,
मुझको ही वो घूर रहा था ।
बन्दर जैसा चेहरा उसका ,
लड्डू मुँह में ठूस रहा था ।
मैने बोला क्यों रहे हो घूर ,
बोला बहन जी ना हो मगरूर।
आपको नहीं मै देख रहा ,
तिरछी नजरो का ये कसूर।
कैसा है ये बंदा निराला ,
मुझको बहन जी बना डाला।
मुझको अचरज में देखके ,
उसके पापा ने कह डाला।
मेरा बेटा है बड़ा सयाना ,
इसकी नौकरी का ये बवाला।
कहते वहाँ सभी को बहन जी,
इसीलिए इसने ये कह डाला ।
ना इसके शब्दो पे जाओ ,
मन में थोड़ा झांक के आओ।
दिल का है ये बड़ा दीवाना ,
थोड़ा आशिक मिजाज पुराना।
तबतक मेरी मम्मी आयी ,
साथ में चाट पकौड़ी लायी।
बोली मेरी बिटिया ने बनायी ,
है बिल्कुल अन्नपूर्णा माई ।
खाने को ऐसे वो घूर रहा था ,
जैसे वर्षो से भूखा पड़ा था ।
पापा बोले बेटा खाओ ,
बिलकुल भी ना शरमाओ ।
वो बोला मैं नही शरमा रहा,
इतनी सेवा देख के इतरा रहा।
सोच रहा पहले क्या खाऊँ
या बांध के सभी ले जाऊँ ।
उसकी मम्मी हँसती बोली ,
बेटे की मजाक की आदत भोली।
बेटा मेरा खाने का शौकीन ,
बेटी आपकी बहुत नमकीन।
उसकी बहने शर्माती बोली ,
भाई ने मेरे भाभी पसंद करली।
लाओ मुँह को मीठा कराओ ,
शादी की तारिख निकलवाओ।
लड़का बोला बस एक शर्त है,
दहेज़ निभाने का भी फर्ज है।
दहेज़ में करना एक वादा है,
मुझे नित नये पकवान खिलाना है।
खाने का बरबस मै भूखा हूँ ,
किसी की फिर ना सुनता हूँ।
अगर ये वादा निभा पाएगी ,
तभी ये शादी मुकम्मल हो पायेगी ।
शादी की ये शर्त अनोखी ,
सुनकर गुस्सा मन में ठानी।
शर्म लाज का गहना छोड़,
उठ खड़ी मै बरबस फूटी ।
चल उठ यहाँ से भाग ही जाना,
फिर ना कभी शक्ल दिखाना ।
बीवी की तुझे नही जरुरत ,
ले आ जो तेरा पेट करे पूरत।
मन में सोचा कैसा ये जमाना,
बीबी नही हलवाई का चाहना।
ऐसे पेटू से ना शादी करुँगी,
चाहे जिंदगी भर कुँवारी रहूंगी।
शशि कुशवाहा
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