न्याय से खेल तेरा बहुत हो गया।
बस्तियों में अंधेरा बहुत हो गया ।
सच दबाते दबाते भटकते हो तुम
झूठ का अब बसेरा बहुत हो गया ।।
वहशतों की गिरानी बहुत हो गई ।
शहवते-निगाहबानी बहुत हो गई ।
मुंसिफो बदलो सफ़हाते-तारीख को
हिंद में यह कहानी बहुत हो गई।।
बुलबुलों से चमन कोई छूटे नहीं ।
फिर कोई निर्भया हमसे रूठे नहीं ।
अब खिलौना कोई भी किसी हाथ से
प्यारी गुड़िया का हर हाल टूटे नहीं ।।
गिरानी- विषमता
शहवत- वासना
मुंसिफ- न्याय कारी
सफ़हात -पृष्ट
तारीख -इतिहास
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प्रमोद प्यासा
अलीगढ़
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