जघन्य अपराध-प्रमोद प्यासा 


न्याय से खेल तेरा बहुत हो गया।
बस्तियों में अंधेरा बहुत हो गया ।
सच दबाते दबाते भटकते हो तुम 
झूठ का अब बसेरा बहुत हो गया ।।


वहशतों की गिरानी बहुत हो गई ।
शहवते-निगाहबानी बहुत हो गई ।
मुंसिफो बदलो सफ़हाते-तारीख को 
हिंद में यह कहानी बहुत हो गई।।


बुलबुलों से चमन कोई छूटे नहीं ।
फिर कोई निर्भया हमसे रूठे नहीं ।
अब खिलौना कोई भी किसी हाथ से 
प्यारी गुड़िया का हर हाल टूटे नहीं ।।


गिरानी- विषमता
शहवत- वासना 
मुंसिफ- न्याय कारी
सफ़हात -पृष्ट 
तारीख -इतिहास
*******
प्रमोद प्यासा 
अलीगढ़


 




एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ