अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष
सबसे पहले मैं आप सभी को अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं देती हूँ। आज भारत ही नहीं विश्व में जब जब महिला दिवस आता है महिलाओं के हित की बात होती है। कोई भी मंच हो चाहे राजनीति का मंच हो, समाज सेवा का मंच हो या फिर साहित्यकारों का या शिक्षा जगत का मंच हो, नारी उत्पीड़न एवं बेटी बचाओं के नाम पर तमाम बातें होती हैं। परन्तु महिला दिवस का सूरज ढला नहीं कि वह बातें फिर कहॉं विलुप्त हो जाती हैं ? मुझे समझ ही नहीं आया।
महिलाओं पर हो रहे अत्याचार नये नहीं हैं ये सदियों से हो रहे हैं। यहॉं मैं एक बात स्पष्ट रूप से कहना चाहूँगी कि आदिकाल में रामायण के माध्यम से जो सीता पर अत्याचार की बात सुनी मैं उसे अत्याचार की श्रेणी में नहीं रखती। वह तो एक लीला थी, देव लीला। भगवान राम बन में रहते हुए भी बहुत से कार्य पूरा नहीं पाये जिसको उन्होंने सीता को माध्यम बना कर पूर्ण किया। इस लिए उसे हटाकर मैं अपनी बात रखना चाहती हूँ। 90 के दशक के बाद और खास तौर से कहें तो 20वी शताब्दी में नारी शिक्षा और नारी अधिकार की बात अपने चरम पर है। हर मॉं-बाप अपने बेटियों को पढ़ा लिखा कर इस काबिल बना रहा है कि उसकी बेटी समाज में स्थान बना सकें। परन्तु वही बेटी का बाप जब एक पति के रूप में आता है तो उसकी सोच न जाने कहॉं चली जाती है? मैं दावे के साथ कह सकती हूँ कि यदि आज नारी का उत्थान कही से रूका है तो वह है उसका परिवार। आज भी परिवार में नारी की दशा अच्छी नहीं हैं। वह समाज की हिंसा की तो शिकार बाद में हो रही है पहले वह परिवार की हिंसा का शिकार हो रही है। परिवार उसके पैरो में बेडियॉं डालने का काम कर रहा है। परिवार ही उसकी सोच को जकड़ कर रखा है। बाहर के मंचों पर, समाज के बीच में बड़ी बडी बाते करने वाला पति आज इस आधुनिक युग में भी अपनी पत्नी का मानसिक उत्पीड़न कर रहा है। अपनी पत्नी को बच्चों के सामने मारने पीटने का काम कर रहा है। पति कितना भी पढ़ा लिखा क्यों न हो, किसी भी पद पर क्यों न हो वह पत्नी को समान्ता का अधिकार देने को तैयार नहीं। जरा गंम्भीरता से सोचीये कि पति द्वारा जब पत्नी को पीटा जाता है तो वह अपने जख़्मों के निशान कैसे छुपाती होगी ?अपने बच्चों को, अपने कलिग को वह क्या बताती होगी कि वह ज़ख्म कैसे लगें? क्योंकि नारी मन अपने पति को किसी के आगे रूसवा नहीं कर सकती। पति चाहे लाख जालिम सही वह पति के खिलाफ एक अक्षर नहीं सुन सकती। आज भी नारी की यह महानता है कि मार भी खाती है तो मुस्कुराते हुए। बद्दूआ भी देगी तो आशीर्वाद की तरह। इस लिए शायद उसे शास्त्रों में गृहणी का दर्जा दिया गया, भर्ता का दर्जा दिया गया है। परन्तु यह कब तक चलेगा, ये सोचना भी आप सब को होगा।
कब तक पति जो बड़ी बडी बाते कर के समाज में अपना उच्च स्थान बनाये हुए है उसको बचा पायेगी ? । आज मुझे एक फिल्म के एक बोल याद आ रहे हेैं जिसमें एक सह नायक कहता है कि जम्मींदार की भैस दूध न दे तो हम पीटते है, जम्मींदार की गाय चारा न खाये तो हम पीटते हैं। जम्मींदार के खेत में पैदावार न हो तो हम पीटते हैं। यही हाल आज पत्नी का है। परिवार मे कसूर चाहे उसके ससुराल पक्ष के घर का हो, उसके बेटे बेटी समाज का हो या उनसे माईके के रिश्तेदारो का हो, कोप भाजन और शरीरिक पीड़ा तो केवल पत्नी को उठानी पड़ती है। ज़ख्म के निशान उसके बदन पर आते है। पूछना चाहती हूँ आज मैं इस समाज से कि पत्नी नाम के इस रिश्ते की ख़ता क्या है ? क्या वह नारी उत्थान से अलग है ? क्या उसकी कोई अपनी जिंदगी नहीं हैं ? उसके अपने सपने, उसकी अपनी सोच नहीं हैं? हर कदम पर रोक टोक ठोकर बना कर क्यों उसकी प्रतिभा उसके सपने को पति नामक पुरूष अपने स्वार्थ की चक्की में पीस दे रहा है?
आप मुझे बता दीजिए कि जब घर में ही नारी की इज्जत और उसके विचारो उसके सपनो का मोल नहीं तो फिर समाज में यह बाते कैसे आयेगी? हम जपते रहें नारी उत्त्थान की माला, लेते रहे बराबरी का हक। आज यह सब देख कर मुझे गालिब का एक शेर याद आ रहा है।
हमको मालूम है जन्नत की हकी़क़त लेकिन
दिल को बहलाने के लिए "ग़ालिब", ये खयाल अच्छा है
इसी के साथ मैं अपनी बात समाप्त करती हूँ और आशा करती हूँ कि कभी न कभी तो वह दिन आयेगा। जब हम होगें हमारी सोच होगी। हमारे रास्ते होगें।
सरिता सिंह भागलपुर बिहार
05 अप्रैल 2020 को महिला उत्थान दिवस पर आयोजित
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