मेरी बेटिया,मेरा अभिमान । मेरी जिठानियो और ससुर ने जब मेरी 15 दिन की जुड्वा बेटियो के कपडे घर से बाहर फिकवा कर निकाला ,तभी तय कर लिया बेटियो को कभी वापस नही लाउँगी। बेटियो को ऐसी उचाईयौ पर ले जाऊंगी की लोग बुलाये उन्हे ।मैने पूरा ध्यान बेटियो पर लगा दिया ।उनकी पढ़ाई और कला के विकास मे ।धीरे धीरे मेरी मेहनत और बेटियो की लगन मेहनत रंग लाने लगी ।दोनो को कत्थक मे पहचान मिलने लगी ।और वर्तमान मे जिन लोगो ने बेटी होने के कारण उनको घर से निकाला था ।वही लोग चाहते है की ईशा -मिशा उनके घर आये, लेकिन रिश्तो की खाई इतनी बडी हो गई है जिसे लाँघना अब स्ंभव नही ज्योती किरन रतन
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