काश माँ होती-सन्नी कुमार

अन्तर्राष्ट्रीय. महिला दिवस पर विशेष (नवप्रवेशी)


मैंने देखा है उसे अपनी ख्वाहिशों को दफना कर हमारी छोटी-छोटी खुशियों का ख्याल करते हुए ,गम खा कर आंखों में आंसू छुपा कर हर बातों पर हंसते हुए  माँँ ही तो होती है अरे मां तो होती है जो कर लाड प्यार दे  ममता दुलार अपने संस्कार बच्चों में बोती है ,अपनी औलाद को ले ना जाने कितने अनगिनत अरमा अपनी आंखों में पीरोती है वह मा ही तो होती है जो अपने मुंह का निवाला भी हमें दे भरा हुआ है पेट मेरा यह  बातें कह वह खुद भूखे सोती हैं जिसके लिए बेटा था हीरा और थी बेटी मोती जो कहती थी बेटे को कुल का दीपक और बेटी को घर की है ज्योति आज सुन अपने ही लाल की बात वह दुखिया कोने में जा सिसक सिसक कर रोती है मत भूलो वह माही तो होती है जो तेरे सर पर हाथ फेर तेरी सारी बलाई ले तुझे सौ सौ दुआएं देती है  अगर है तू मां का सच्चा लाल अगर जो तू करता है मां के छिपे दर्द का एहसास अगर तो बस कर बात बिखेर उसके सपनों का आशियां मत निकाल उसके अरमानों की अर्थी क्योंकि मां की ममता तड़प कर रह जाए विचलित होती हैं अरे कद्र मां की उनसे पूछ जा कद्र मां की उनसे पूछ जो कहते हैं काश मेरी भी मां होती तो उसके आंचल को मैं यूं ना तरसता उसकी ममता को मैं यूं ना रोते काश मेरी भी मां होती काश मेरी भी मां होती!


सन्नी कुमारी पटना


05 अप्रैल 2020 को महिला उत्‍थान दिवस पर आयो‍जित
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