कलयुग-अजनबी

 


कलयुग का गुरु मंत्र है, दम दारू और दाम ।
इसके बिना ना होएगा , कोई पुरन काम ।।


देख देख हैरान है , दुनिया को भगवान ।
भले लोग सब है दुखी , खुश है बेईमान ।।


झूठ बोले का बढ़ा ,फैशन और रिवाज ।
मोबाइल ने कर दिया ,सबको झूठा आज ।।


मरना सबको एक दिन, सब जाने ये बात ।
फिर भी खोटे काम मे, सभी लिप्त दिन रात ।।


बहू डाटती सास को ,करती रोज क्लेश ।
कलयुग की हर नारी को ,मन माही छल द्वेष ।।


बोया पेड बबूल का,आम कहा से होय ।
चिपके रहे मोबाइल से तो, काम कहा से होय ।।


गूगल बाबा सबसे बड़े, सब ज्ञानो की खान ।
तीन लोक की ज्ञान संपदा, रहे गूगल मे आन।।


नैतिकता कुम्हला गई, हावी है उत्पाद ।
बेटे और बहून से ,दुखी पिता और मात ।।


सुख सुविधा के कर लिया, जमा सभी सामान ।
कौड़ी पास ना प्रेम की, बनते है धनवान ।।


नर नारी का भेद मिटा ,लाज बिकी बाजार ।
अंग अंग नंगा हुआ, हाय रे हाय सिंगार ।।


हर कोई हमको मिला ,पहने हुए नकाब ।
किसको हम अच्छा कहे, किसको कहे खराब ।।


दौर कलयुगी चल रहा, बदले सब हालात ।
दुनिया झूठी हो गई, झूठी सबकी बात ।।


सीता सीता ना रही, रहीम रहे ना राम ।
बुरे काम से ना डरे, अबके आसाराम ।।


लोकतंत्र अब रो रहा, देख बुरे हालात ।
संसद मे चलने लगे ,थप्पर घुसे लात ।।


अंग्रेजी से प्यार है, हिंदी से परहेज ।
उपर से इंडियन ,भीतर से अंग्रेज ।।


राम राज्य मे इस तरह ,फैली लुटम लुट ।
दाम बुराई के बढे, सच्चाई पर छुट ।।


मोबाइल का प्रचलन बढ़ा, जब से चाहू ओर।
सुबह शाम बस बातो मे, रहता सबका जोर ।।


कलयुग के इस दौर मे ये कैसा बदलाव ।
सगे संबंधी दे रहे दिल को गहरे घाव ।।


बना दिखावा प्यार अब ,लेती हवस उफान ।
राधा के तन पे लगा ,है मोहन का ध्यान ।।



        उपेंद्र अजनबी 
           सेवराई भदौरा  गाजीपुर 
        मोबाइल - 7985797683


 



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