क्यों खामोश है तू-किरण

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष


क्यों खामोश है तू
कब तक खामोश रहेगी? 
ह्रदय की अथाह वेदना पीड़ा 
कब तक और क्योंकर सहन करेगी? 
न स्वयं से तू यूँ मुँह मोड़ 
खामोश न रह बस चुप्पी तोड़
घुट-घुटकर, तिल-तिलकर
यूँ कब तक मरती रहेगी ?
दर्द को धर्म का नाम देकर
उत्पीड़न कब तक सहन करेगी ! 
क्यों खामोश है तू
कब तक खामोश रहेगी? 
अबला-अबला कह कहकर
जग ने बस मनोबल तेरा गिराया है 
जानते वो भी सब हैं 
तू चण्डी,शक्ति महामाया है
जब दिये देव ने दिव्य गुण तो 
क्यों चुपचाप नीर बहाए !
है सृष्टि का मूल स्तम्भ तू 
फिर क्यों स्वाभिमान डिगाए ?
क्यों खामोश है तू 
कब तक खामोश रहेगी ?
अपनी शक्ति का अनुभव तू कर
समेट ताकत न तू अब डर
कर दमन अतिचारी का अब
खामोश न रह बस हिम्मत कर
क्यों खामोश है तू 
कब तक खामोश रहेगी? 
ह्रदय की अथाह वेदना पीड़ा 
कब तक और क्योंकर सहन करेगी !



         किरण बाला 
              (चण्डीगढ़)



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