अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष
सोचकर मंद मंद मुस्कुरा रही थी मैं
कदम जब पड़े बेटी के मेरे आंगन में
खुशियां सी फैला दी उसने मेरे
बरसों से खाली पड़े मकान में
अपनी एक मुस्कान से खूबसूरत
बना दिया मेरी दुनिया को
घर बना दिया उसने मेरे ईटों
से बने खाली मकान को
अब तो अपने बचपन में गुटर गुटर
नन्हें-नन्हें पैरों के सहारे
फिर चलेगी ठुमक ठुमक
कर इन्हीं नन्हे कदमों के सहारे
फिर सीखे गी खेलना नाचना
कूदना अपने इन्हीं कदमों से
फिर जाएगी स्कूल और कॉलेज
और नाम करेगी रोशन मेरा अपने हुनर से
अच्छी बेटी की सारी
जिम्मेदारी निभाएगी वो
कभी मां के साथ घर पर तो
कभी पापा का काम संभाल लेगी वो
माता पिता के संस्कारों को संजोकर
एक नए घर जीवन में कदम रखती हैं बेटियां
नई रस्मों नई कसमों के साथ
किसी के घर की बहू बन जाती हैं बेटियां
यही नन्हे कदम हो जाते हैं जब बड़े
तो एक नहीं दो-दो घरों की
लाज संभालती हैं बेटियां
संगीता शर्मा
05 अप्रैल 2020 को महिला उत्थान दिवस पर आयोजित
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