बिकानेर में होली -सीता देवी राठी

होली विशेष


 भारत उत्सवों का देश है । आये दिन हम कोई न कोई उत्सव से हम जुड़े रहते हैं । हर उत्सव का एक अपना अलग ही मजा होता है और बात होली की करें तो क्या कहना --- होली तो सबसे अधिक रंगीन और मस्त उत्सव है । भारतवर्ष में इस दिन सभी लोग छोटे- बड़े , ऊंच-नीच , गरीब -अमीर , ग्रामीण -शहरी का भेद भुलाकर एक-दूसरे के गले मिलते हैं तथा परस्पर गुलाल लगाते हैं और आपस में भेदभाव भूल जाते हैं। वास्तव में उत्सव पुराने वैर भाव भुलाकर एक दूसरे के करीब आने का मौका प्रदान करते हैं । नीरस जीवन को सरसता प्रदान करते हैं ।  होली के मूल में हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रहलाद और होलिका का प्रसंग आता है । हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मार डालने के लिए होलिका को नियुक्त किया था । पर वहाँ दिव्य चमत्कार हुआ होलिका आग में जलकर भस्म हो गई और विष्णु भक्त प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं हुआ । भक्तों की विजय हुई और राक्षस की पराजय हुई । होली वाले दिन घर मे तरह तरह के पकवान बनाये जाते हैं । और भगवान को भोग लगाया जाता हैं। शाम को होलिका पूजन किया जाता है ।
कुमकुम ,चावल, मोली ,होलिका को चढ़ाया जाता है स्त्रियां सजधज कर पानी के लोटे से कार देती हुए होलिका की परिक्रमा करती है । दूसरे दिन रंग खेलने का कार्यक्रम होता है ।  प्रातः से दोपहर तक  सब अपने हाथों में लाल ,हरे ,पीले- नीले रंग लिए हुए आपस में प्रेम भाव से गले मिलते हैं ।इस दिन गली मौहल्लों में ढोल मंजीरा सुनाई देते हैं । लोग समूह और मंडलियों में मस्त होकर नाचते- गाते हैं । वास्तव में होली खुशियों का त्यौहार है । होली अलग -अलग प्रांत में अलग-अलग तरह से मनाने का रिवाज है ।
हमारे राजस्थान के बीकानेर प्रांत में होली का त्योहार कुछ इस तरह मनाया जाता है
होली के 7 दिन पहले लड़कियां गाय के गोबर के उपले बनाती है ।और उन्हें चांद- सूरज का सुंदर आकार देती है । उपलों के बीच मे छेद कर देती है फिर इन उपलों को जाकर धूप में सूखा आती है । जब यह उपले पूरी तरह सूख जातें है । तब इनकी माला बनाकर होली वाले दिन शाम को भाई के तिलक लगाकर यह माला भाई की लंबी आयु की भगवान से प्रार्थना करते हुए गले में पहनाती है । फिर इन उपलों की माला को होलिका की पूजा करके होलिका को चढ़ा देती है । जब होलिका दहन होता है तो यह उपले भी उसमें जल जाते हैं। इसका वैज्ञानिक आधार माना जाए तो गाय के गोबर से पर्यावरण सुरक्षित रहता है ।फिर दूसरे दिन लड़कियां होलिका दहन की राख को घर लाती है और उसकी 16 दिन तक पूजा करती है जिसे हम मारवाड़ी लोग गणगौर पूजन कहते हैं ।


सीता देवी राठी
कूचबिहार
पश्चिम बंगाल


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