माल कहा क्या कमाल कहा -इंदू

वाह रे माँ के लाल  माँ के नाम को छोड़ा कहाँ दाग लगाने को तुझे कुछ न मिला ? माँ का नाम ही मिला तुझे.? तूने तो माँ की कोख को ही बदनाम कर दिया  ।मर्द अति बलशाली ,खुद को बहुत बलवान कहता है। बहन से जब राखी बँधवाता है ,रक्षा की कसमें  खाता है। जो पत्नी की एक छोटी गलती, सह नहीं पाता है। निःसंकोच उस पर हाथ उठाता  है। तरह-तरह से मर्दानगी दिखाता है। किन्तु उसकी बहन की तरफ कोई आंख उठा कर देखे,सबसे बड़ा गुंडा बन जाता है।
बाकी सड़क पर चल रही लड़की को देखकर, अपने मनचले दिल को रोक नहीं पाता है उस पर,, अश्लील ताने कसता है, सीटियाँ बजाता है, शर्म लिहाज़ की सारी हदें तोड़ देता है। हवस की आग उगलता है, उसको अपना शिकार बनाता है। उसके लिए लड़की तो एक वस्तु है l उसका तो हर पाप माफ़ है... 😠
अपने पद की गरिमा को भूल  मर्द बन अपनी जात दिखाता है lभूल जाता है सबकुछ कड़वी_सच्चाई को झुठलाता है...कि मर्द बनने की नाकाम कोशिश में, अपनी आत्मा का सौदा करता है अपनी भावनाओं का खून कर, हर बार  मरता है संवेदनहीन ,मर्द तो बन जाता है, किन्तु अक्सर एक इंसान बनना भूल जाता है...।प्रतीक्षा के बाद... निर्भया का इंसाफ़ हुआ किन्तु क्या अब बस ? आगे हुआ नहीं या होगा नहीं...?इस सवाल ने न जाने कितनों की नींद खत्म कर दिया है अखिर औरत कहाँ सुरक्षित है, किसे अपना कहे, कहाँ रहे ? भले ही इस न्याय से एक माँ तृप्त हुई किन्तु बाकी माँओं का क्या ? जब तक ऐसी कुत्सित विचार धारा की तिलांजलि नही होगी, जबतक मानसिक विकास नहीं होगा तबतक इस बीमारी को नही रोका जा सकता तब तक न जाने कितनी दामिनी, कितनी निर्भया और निठारी निठारी काण्ड होते रहेंगे, बेटियों की वेदी बनती रहेगी, निर्ममता से मरती रहेंगी 😢कहते हैं जैसा अन्न वैसा मन मेरे विचार से अब हर माँ को सुभद्रा बनना होगा तभी नए भारत वर्ष का नव निर्माण संभव होगा... ।


इंदु उपाध्याय पटना बिहार



 



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